BNP NEWS DESK। chhath puja कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय… जैसे कई कर्ण प्रिय सुमधुर गीतों के होते सामूहिक गान। हवा पर बिखरती धूप, अगरबत्ती की सुगंध। कहीं अर्घ्य के लिए सजे सूप और भरी दौरी लेकर गंगा घाट की ओर जाते व्रती महिलाएं तो उनकी सहायता के लिए पूरी तन्मयता के साथ जुटे परिवार के लोग। भगवान भुवन जैसे ही अस्त होने लगे कि जय हो सुरूज बाबा की, दोहाई दीनानाथ…, आपन अर्घ्य स्वीकार करीं अउर मनसा पूरी करअ हमार के साथ अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया।
chhath puja लोक आस्था के अलौकिक महापर्व छठ पर नगर ही नहीं, गांव-गांव, डगर-डगर छठ मैया के गीतों की सुमधुर लहरियां बहती रहीं, नदियों व सरोवरों के तट पर आस्था का लहरें हिलोरें लेती दृष्टिगत हुईं। व्रतियों संग श्रद्धालुओं के समूह ने भगवान भास्कर को प्रथम अर्घ्य देकर सुख-संपत्ति, कल्याण की कामना की।
भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है
संतान प्राप्ति, सुहाग की रक्षा, घर में सुख शांति के लिए भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना खीर का प्रसाद, तीसरे दिन पहला अर्घ्य डूबते सूर्य को नमन तथा चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ यह महापर्व संपन्न होता है।
महिलाएं लोक मंगल और जगत के कल्याण की कामना से महिलाएं सूर्य की आराधना का यह कठिन व्रत करती हैं। इससे संतान सुख, पति के मंगल और रोग-दुख का शमन होने की भी मान्यता है।
नइहर से ससुराल तक के मंगल की कामनाओं से भरे छठ माता की आराधना के ऐसे स्वरों की गूंज ने सोमवार की शाम गंगा-वरुणा के तटों, कुंडों, सरोवरों के किनारे लोक पर्व की महिमा से हर तन-मन को सींचा।
कमर या घुटने तक जल में खड़ी व्रती महिलाओं ने एक तरफ शुभ के प्रतीकों से सजा डाला लेकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया तो दूसरी ओर उनके परिजनों, रिश्तेदारों ने बैंडबाजे, नगाड़े के साथ जमकर आतिशबाजी की।
उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही मंगलवार को उत्तर भारतीय लोक मानस में बसे इस उत्सव रूपी व्रत का पारण होगा। सूर्योपासना के डाला षष्ठी व्रत के पहले अर्घ्य के लिए दोपहर बाद उमड़े जन सैलाब से घाटों का नजारा बदल गया। नए परिधानों में सज-धज कर महिलाएं घरों से अर्घ्य देने के लिए निकलीं तो तमाम लोग उन रास्तों की धूल बटोरने लगे।
कुछ महिलाएं लेटते हुए घाटों, कुंडों पर पहुंची तो कुछ लकड़ी से रास्ता नापते हुए। शाम चार बजे तक दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, अहिल्याबाई घाट, दरभंगा घाट, राण महल के अलावा केदार घाट, हनुमान घाट, शिवाला घाट से लेकर अस्सी, नगवा, सामने घाट से विश्व सुंदरी पुल तक व्रतियों की एक समान शृंखला सी बन गई।
सूप, दउरी में अल्पनाओं से सजे कलश पर जलता हुआ दीया लेकर व्रतियों के पति, पुत्र या भाई, भतीजे अर्घ्य दिलाने के लिए आगे-आगे चल रहे थे और उनके पीछे परिचितों की भीड़। संतान की कामना और अचल सुहाग के निमित्त जिसके मनोरथ पूरे हुए थे, वह उसी तरह बधाई बजवाते हुए घाटों पर पहुंचा। वेदियों पर हल्दी से शुभ के प्रतीक बनाए गए।
गन्ने के मंडप के नीचे पांच, 11, 21 दीये जलाकर अनार, सेब, संतरा, केला, अन्ननास, नारियल, चना, गुड़-आटे का खास्ता भोग के रूप में अर्पित किया गया। अर्घ्य देने के बाद तमाम व्रती महिलाएं वेदियों के पास रात भर छठ माता की आराधना कर जागरण करेंगी। जगह-जगह घाटों, कुंडों को लतर और फूलों से सजाया गया है।
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chhath puja
कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय... जैसे कई कर्ण प्रिय सुमधुर गीतों के होते सामूहिक गान। हवा पर बिखरती धूप, अगरबत्ती की सुगंध।
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