BNP NEWS DESK। bhojashala सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्य प्रदेश के धार जिले में मध्यकालीन युग की ‘भोजशाला’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करने को लेकर सोमवार को सहमति जताई। भोजशाला पर हिंदू और मुसलमान दोनों अपना दावा करते हैं।
मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी ने शीर्ष कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 11 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें पूजा स्थल का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह किस समुदाय का है।
bhojashala हाई कोर्ट ने अपने 11 मार्च के आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को छह सप्ताह के भीतर भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था।
जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की इन दलीलों का संज्ञान लेने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की कि एएसआइ ने पहले ही अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि हिंदू पक्ष ने लंबित याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है।
सात अप्रैल, 2003 को एएसआइ द्वारा तैयार की गई व्यवस्था के तहत हिंदू भोजशाला परिसर में मंगलवार को पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करते हैं। शीर्ष अदालत ने एक अप्रैल को एएसआइ द्वारा संरक्षित 11वीं सदी की धरोहर (भोजशाला) के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था।
हिंदू भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला मस्जिद कहता है। शीर्ष अदालत ने याचिका पर जवाब मांगते हुए कहा था कि विवादित सर्वेक्षण के नतीजों पर उसकी अनुमति के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। पीठ ने कहा था- ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे संबंधित परिसर का चरित्र बदल जाए।”
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्य प्रदेश के धार जिले में मध्यकालीन युग की ‘भोजशाला’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करने को लेकर सोमवार को सहमति जताई।
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