वाराणसी, बीएनपी न्यूज। लेह-लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उत्पन्न, दुनिया भर में मशहूर पश्मीना ऊन के उत्पाद अब वाराणसी में भी बनाए जाएंगे। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने एक अग्रणी पहल करते हुए उत्तर प्रदेश के वाराणसी और गाजीपुर जिलों के 4 खादी संस्थानों को कच्ची पश्मीना ऊन के प्रसंस्करण तथा इसे आगे ऊनी कपड़े में बुनने के लिए मनाया है। पश्मीना का कपड़ा वाराणसी में बुना जाएगा। विरासत में प्रापत पश्मीना बुनाई शिल्प को जम्मू-कश्मीर के बाहर पेश करने और इस अनूठी कला से शेष भारत के कारीगरों को परिचित कराने का यह पहला प्रयास है।
वाराणसी में पश्मीना बुनाई अगले साल जनवरी से शुरू होगी। वाराणसी के सेवापुरी आश्रम के 20 खादी कारीगरों को पश्मीना बुनाई में 30 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसके लिए इन संस्थानों द्वारा पश्चिम बंगाल के 2 मास्टर प्रशिक्षकों को राजी कराया गया है। वाराणसी मंडल के इन चारों खादी संस्थानों ने दिल्ली में कच्ची पश्मीना ऊन का प्रसंस्करण शुरू कर दिया है। दिल्ली में प्रसंस्कृत लगभग 200 किलोग्राम पश्मीना ऊन दिसंबर के पहले सप्ताह तक लेह में कारीगरों को आपूर्ति की जाएगी। लेह के ये कारीगर दिसंबर के अंत तक ऊन कातेंगे, जिसे बुनाई के लिए वाराणसी लाया जाएगा। पश्चिम बंगाल से आने वाले दोनों कारीगरों को मलमल बनाने में अत्यधिक प्रशिक्षण प्रापत है, जिसमें अति सूक्ष्म बुनाई शामिल होती है जो पश्मीना की बुनाई के समान होती है।
वाराणसी में पश्मीना उत्पादन करने वाली ये 4 खादी संस्थाएं हैं
कृषक ग्रामोद्योग विकास संस्थान, वाराणसी, श्री महादेव खादी ग्रामोद्योग संस्थान, गाजीपुर, खादी कंबल उद्योग संस्थान, गाजीपुर और ग्राम सेवा आश्रम, गाजीपुर।केवीआईसी से मान्यता प्राप्त इन खादी संस्थानों ने लेह-लद्दाख से कच्ची पश्मीना ऊन की खरीद शुरू कर दी है और इसे 15 नवंबर को प्रसंस्करण के लिए दिल्ली लाया गया है जिसे रेशे निकालने के लिए ले जाया जाएगा। कताई के लिए लेह में खादी कारीगरों को खुले हुए धागों के रेशे वापस भेज दिए जाएंगे, जिन्हें केवीआईसी द्वारा 100 नए मॉडल चरखे प्रदान किए गए हैं।
यह घटनाक्रम हाल ही में लद्दाख के उपराज्यपाल आर. के. माथुर के साथ केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना की बैठक के बाद हुआ है, जहां उप राज्यपाल ने बताया कि लेह-लद्दाख में प्रति वर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन कच्ची पश्मीना का उत्पादन किया जाता है, जिसमें से सफाई और प्रसंस्करण के बाद, पश्मीना ऊन उत्पादों के उत्पादन के लिए वास्तव में केवल 15 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन किया जाता है। लेह-लद्दाख में कुछ छोटी इकाइयों द्वारा पश्मीना उत्पादों के निर्माण के लिए केवल 15 मीट्रिक टन डीहेयर्ड पश्मीना ऊन का उपयोग किया जाता है, जो कि केवल 500 किलोग्राम मात्रा, यानी 0.5 मीट्रिक टन है, जिससे लद्दाख में रोजगार का नुकसान हो रहा है।
वाराणसी के इन खादी संस्थानों ने हाल ही में लेह से 500 किलोग्राम कच्ची पश्मीना ऊन खरीदी है और इसे प्रसंस्करण, यानी डीहेयरिंग और रेशे में बदलने के लिए दिल्ली लाया गया है। केवीआईसी के अध्यक्ष, श्री विनय कुमार सक्सेना ने कहा, “इस कदम से न केवल लद्दाख में बिना बालों वाली पश्मीना ऊन की पूरी गुणवत्ता का उपयोग सुनिश्चित होगा, बल्कि स्थानीय कारीगरों के लिए रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे और वाराणसी में वास्तविक तथा सस्ती पश्मीना ऊन उत्पादों की उपलब्धता भी होगी। केवीआईसी इन खादी संस्थानों को ऑनलाइन मार्केटिंग सहायता भी प्रदान करेगा। यह एक पथप्रदर्शक पहल होगी क्योंकि पश्मीना का उत्पादन पहली बार जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख क्षेत्र के बाहर किया जाएगा।”
दिल्ली में कच्चे पश्मीना ऊन का प्रसंस्करण 20 नवंबर को अध्यक्ष केवीआईसी द्वारा शुरू किया गया था। संसाधित पश्मीना ऊन की लेह-लद्दाख के कारीगरों को वापस आपूर्ति की जाएगी। दिल्ली में पश्मीना रॉ वूल प्रोसेसिंग सेंटर लेह-लद्दाख में कारीगरों को पश्मीना रेशे की साल भर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जहां अत्यधिक ठंड के कारण सभी गतिविधियां छह महीने के लिए निलंबित रहती हैं।
ऑल चांग थांग पश्मीना ग्रोअर्स मार्केटिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी, लेह, जहां से खादी संस्थान कच्ची पश्मीना ऊन खरीद रहे हैं, ने भी इस कदम का यह कहते हुए स्वागत किया है कि इससे लेह-लद्दाख के स्थानीय कारीगरों को मदद मिलेगी। ऑल चांग थांग पश्मीना ग्रोअर्स मार्केटिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी, लेह के सचिव श्री थिनले ने कहा, “हमने केवीआईसी को 500 किलोग्राम कच्चे ऊन की आपूर्ति की है और भविष्य में कच्चे ऊन की किसी प्रकार की मांग को पूरा किया जाएगा क्योंकि इससे लेह-लद्दाख में खादी कारीगरों को पर्याप्त काम मिलेगा और स्थानीय पश्मीना उद्योग मजबूत होगा।”
केवीआईसी ने एक महीने के प्रशिक्षण के बाद लेह-लद्दाख के 4 गांवों में स्थानीय कारीगरों को पश्मीना ऊन की कताई गतिविधियों को शुरू करने के लिए 8 तकली वाले 100 नए मॉडल चरखे प्रदान किए।
ये गांव हैं : लिकिर, सास्पोल, शक्ति और लेह शहर। वाराणसी संभाग के इन 4 संस्थानों ने कारीगरों को गोद लिया है और विशेष मामले के रूप में 20 रुपये प्रति लच्छा कताई शुल्क देने का फैसला किया है। वर्तमान में, लेह-लद्दाख में पारंपरिक चरखे पर काम करने वाले कारीगर प्रतिदिन केवल 2-3 लच्छा पश्मीना ऊन का उत्पादन कर सकते हैं और प्रति दिन 100 रुपये से कम कमाते हैं। लेकिन अब केवीआईसी द्वारा प्रदान किए गए 8 तकली वाले नए मॉडल चरखे पर, कारीगर प्रति दिन 15 लच्छों तक का उत्पादन करेंगे और प्रति दिन 300 रुपये तक कमाएंगे।
लेह में खादी कारीगर जिन्हें केवीआईसी द्वारा चरखा प्रदान किया गया है, ने कहा कि केवीआईसी की यह पहल लेह-लद्दाख में हमारे लिए पूरे साल काम सुनिश्चित करेगी जिसके परिणामस्वरूप हमें अधिक मजदूरी मिलेगी और हमारी वित्तीय स्थिरता कायम होगी।
केवीआईसी ने लेह में 25 उच्च गुणवत्ता वाले 48 इंच चौड़ाई के करघे भी प्रदान किए हैं जो न केवल कारीगरों की बुनाई में लगने वाली मेहनत को कम करेगा बल्कि सभी आकार के कपड़ों का उत्पादन भी करेगा। काम बढ़ते ही केवीआईसी और भी चरखे लगाएगा।
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