बीएनपी न्यूज डेस्क। भारत अब क्या करे? यह सवाल बहुत बड़ा और बहुत गंभीर है। आज संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की सबसे बड़ी परीक्षा होने वाली है। यूक्रेन की सड़कों पर लाशें बिखरीं देख दुनिया स्तब्ध है और रूस पर कड़ी कार्रवाई के लिए प्रस्ताव पारित करना चाहती है। ऐसे में भारत क्या प्रस्ताव का साथ देगा या एक बार फिर मतदान से दूर रहेगा, यह बड़ा सवाल है।
रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से निकालने का आएगा प्रस्ताव
यूक्रेन में रूस की कार्रवाई के लिए आज संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से उसे बेदखल करने का प्रस्ताव पेश किया जाना है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की विशेष बैठक बुलाई गई है। अमेरिका 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद से रूस को निकालने का प्रस्ताव लेकर आ रहा है। अगर भारत पहले की तरह ही इस बार भी मतदान में हिस्सा नहीं लेता है तो इससे रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों का हाथ ही मजबूत होगा जबकि पहले भारत के वोटिंग से हटने से रूस को मजबूती मिलती थी। ऐसे में भारत करे तो क्या? अगर भारत ने मतदान नहीं किया तो परोक्ष रूप से रूस का विरोध होगा जिससे दशकों की दोस्ती में दरार आने की आशंका पैदा होगी। अगर भारत ने रूस के पक्ष में मतदान दिया तो गुटनिरपेक्षता की नीति पर सवाल उठेगा और पश्चिमी देशों को उंगली उठाने का मौका मिल जाएगा।
भारत के लिए कठिन परीक्षा का वक्त
दरअसल, भारत के वोटिंग में भाग नहीं लेने से रूस को कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव पास होने के लिए उपस्थित सदस्य देशों और डाले गए कुल मतों के दो-तिहाई की ही जरूरत होगी। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र में रूस के दूतावास ने सदस्य देशों को चेतावनी दी कि जो भी वोटिंग में भाग नहीं लेना भी रूस का विरोध करना ही माना जाएगा जिसे रूस कम-से-कम दोस्ताना व्यवहार तो नहीं मानेगा। अनुमान है कि रूस के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो मानवाधिकार परिषद से रूस की सदस्यता खत्म हो जाएगी और यह परिषद 46 सदस्यों की रह जाएगी।
4 मार्च के प्रस्ताव पर भी वोटिंग से दूर रहा था भारत
इस बार लिथुआनिया संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ प्रस्तावक की भूमिका निभा रहा है। इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का विकल्प भारत के पास है ही नहीं क्योंकि ऐसा हुआ तो रूस के साथ उसका पारंपरिक द्विपक्षीय संबंधों को तगड़ा झटका लग सकता है। रूस के खिलाफ बीते 4 मार्च को भी प्रस्ताव लाया गया था, तब भारत ने यह कहते हुए खुद को वोटिंग से दूर रखा कि यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियानों के दौरान मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन के आरोपों की पुष्टि के लिए जांच आयोग बिठाई जाए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो ग्वातेरेस ने यूक्रेन के शहर बूचा में आम नागरिकों की हत्या के आरोपों की निष्पक्ष जांच की जरूरत बताई तो भारत ने न केवल उसका समर्थन किया बल्कि बर्बरता की कड़ी निंदा भी की। हालांकि, भारत ने अपने बयान में रूस का नाम नहीं लिया।
रूस के लाए प्रस्ताव पर भी भारत नें नहीं किया था वोट
भारत संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन मुद्दे पर नौ बार मतदान से दूर रहा है। इनमें दो बार महासभा में हुए मतदान भी शामिल हैं। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस की तरफ से लाए गए प्रस्ताव पर वोटिंग में भी भाग नहीं लिया। इस एक मौके को भारत का पश्चिमी देशों को मिला साथ के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने भी प्रस्ताव को गिराने के लिए वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से आखिरी बार 2011 में लीबिया को निकाला गया था। उस वक्त लीबिया के खिलाफ प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
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