BNP NEWS DESK। Maa Annpurna Vrat अन्नपूर्णा मंदिर में सैकड़ों वर्ष पुरानी है धान के बाली की परम्परा। ये चौथी पीढ़ी निर्वाहन कर रही हैं। किसान धान की पहली फसल के रूप में अर्पित करते है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े किसान के समय से चली आ रही है परम्परा।
Maa Annpurna Vrat काशी के विश्वनाथ गली स्थित अन्नपूर्णा मंदिर है जिनको अन्न की देवी भी कहा जाता है। पुराणों में कहा गया ही की प्राणियों के अन्न के खातिर स्वयं महादेव ने भगवती अन्नपूर्णा के आगे झोली फैलाई थी।
धान के बालियों की परम्परा की बात करें तो कई दशक पुरानी है जिसे आज भी चौथी पीढ़ी निभाती चली आ रही है। मंदिर प्रबंधन की व्यवस्था से जुड़े स्वर्गीय नारायण मिश्र के समय वर्ष 1960 से इस परम्परा निर्वाहन होता आ रहा है। नारायण मिश्र सोनभद्र के पन्नूगंज थाना, गांव जयमोहरा के छोटे से किसान थे। हर वर्ष अपनी फसल का कुछ अंश माता को अर्पित करते थे।जिससे इनकी फसले अच्छी होने लगी।
10 दिन में बालियों को काट छांट कर माता के श्रृंगार के लिए तैयार करते
आज भी नारायण मिश्र के प्रपौत्र शशि कांत मिश्र उसी परम्परा का निर्वाह बड़े मन से करते आ रहे है। किसान शशिकांत ने बताया कि इन बालियों को तैयार करने से पहले सभी लोग स्नान करते हैं और इनकी पूजा की जाती है पूरे सफाई के साथ लगभग एक दर्जन महिला व पुरुष मिलकर दस दिन में इन बालियों को काट छांट करके माता के श्रृंगार के लिए तैयार करते हैं।
महंत शंकरपुरी कहते हैं कि ये काफी पुरानी परम्परा है। मैं खुद इसे 40 वर्षों से को देखते आ रहा हूं। वैसे तो पूर्वांचल के कोने-कोने से धान की बालियां माता दरबार में आती है। विशेष तौर पर धान का कटोरा कहे जाने वाला सोनभद्र से भारी मात्रा में धान की बाल माता को पहुंचती है।
17 दिवसीय महाव्रत के उद्यापन 29 नवंबर को
इस मंदिर में लाखों भक्त दूर दराज से आते है और अन्न का एक प्रसाद पाकर निहाल हो जाते हैं। महंत ने कहा अन्नपूर्णा माता के महाव्रत के रूप में 17 दिवसीय महाव्रत है जिसे करने से धन, धान्य की कमी नहीं होती है।
इस 17 दिवसीय महाव्रत के उद्यापन 29 नवंबर को होगा इस दिन माता दरबार समेत पूरे मंदिर प्रांगण को इसी धान के बालियों से सजाया जाता है।जिसे प्रसाद रूप में दूसरे दिन 30 नवंबर को भक्तों में वितरण किया जाता है।
माता अन्नपूर्णा के श्रृंगार के लिए नए धान बाली को तैयार करने में प्रत्येक वर्ष इन किसानों का महा सहयोग मिलता है।
धान अर्पित करने में मुख्य रूप से किसान शशिकांत मिश्र, गोपाल, कमलेश चंद्र, अजय कुमार पाठक, विद्या मिश्र और संतोष चौबे रहे। वहीं धान की बाली बनाने वालों में राजकुमार,अमरनाथ, सुशीला, श्यामा समेत अन्य ने बाली बनाने का काम किया।
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Maa Annpurna Vrat
अन्नपूर्णा मंदिर में सैकड़ों वर्ष पुरानी है धान के बाली की परम्परा। ये चौथी पीढ़ी निर्वाहन कर रही हैं। किसान धान की पहली फसल के रूप में अर्पित करते है।
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