BNP NWS DESK़। lok sabha election review प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद उम्मीदवारों के चयन और चुनावी मुद्दों को सेट करने में विफलता लोकसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ी। कुछ राज्यों में बड़े नेताओं के अहं का टकराव भी नतीजों पर नकारात्मक असर पड़ा।
lok sabha election review चुनाव नतीजों से साफ है कि 2014 और 2019 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तरप्रदेश में अपने ओबीसी वोट बैंक को सहेजने में विफल रही। इसके साथ ही जीत के प्रति अतिविश्वास के कारण निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की शिथिलता और आरएसएस के स्वयंसेवकों की सक्रिय भागीदारी में कमी की कीमत भी भाजपा को चुकानी पड़ी।
भाजपा कोई भी ऐसा राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में विफल रही
भाजपा 2014 में मनमोहन सरकार का भ्रष्टाचार और 2019 में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद केंद्रीय चुनावी मुद्दा रहा। लेकिन 2024 में भाजपा कोई भी ऐसा राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में विफल रही, जो मतदाताओं को मतदान केंद्र तक खींच कर ला सकें। इस बार राष्ट्रीय मु्द्दे के अभाव में स्थानीय मुद्दे चुनाव में हावी रहे। lok sabha election review
राष्ट्रीय मु्द्दों के अभाव में दो-दो, तीन-बार के सांसदों के खिलाफ जनता की नाराजगी का भी नतीजों पर असर पड़ा। भाजपा सत्ताविरोधी लहर से निपटने के लिए हर बार चुनाव में अपने पुराने प्रत्याशियों को बदलने के लिए जानी जाती है। लेकिन इस बार भाजपा ने पुराने सांसदों को बदलने में कोताही दिखाई। बिहार और राजस्थान में भाजपा की सीटों में कमी के पीछे इसे अहम वजह माना जा रहा है।
पहले के चुनावों में भाजपा अपने मुद्दे तय कर करती थी और विपक्ष को उसी पिच पर आने के विवश करती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिखा। चरण दर चरण मुद्दा विपक्ष तय करता दिखा और भाजपा उसका जवाब देती रही। अबकी बार, 400 पार के नारे को भी विपक्ष संविधान बदलने और एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण खत्म करने से जोड़कर भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करने में सफल रही। lok sabha election review
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अमित शाह का फेक वीडियो भी बनाया गया
इसके लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अमित शाह का फेक वीडियो भी बनाया गया। भाजपा की ओर से इसका प्रतिकार करने का भरसक प्रयास किया गया, लेकिन तबतक देर हो चुकी थी और विपक्ष आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर एससी, एसटी और ओबीसी के बीच भाजपा के प्रति भ्रम की स्थिति पैदा करने में सफल रही। अदाणी अंबानी और अमीरों की सरकार जैसे मुद्दों पर विपक्ष को घेरने में कोताही रही तो गरीबों में संसाधनों के वितरण के कांग्रेस के वादे पर लोगों को अच्छी तरह समझाने में नाकाम।
उत्तरप्रदेश भाजपा का गढ़ बन गया था। लेकिन इस बार वरिष्ठ नेताओं के बीच अहं की लड़ाई का असर चुनाव प्रचार के दौरान संगठन में बिखराव और उम्मीदवारों के चयन में भी दिखा। उत्तरप्रदेश में 2014 में 71 और 2019 में मिली 62 सीटों ने भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
पिछड़ी जातियां भाजपा से छिटककर सपा और कांग्रेस के पक्ष में जाती दिखी
अमित शाह उत्तरप्रदेश में यादव से इतर अन्य पिछड़ी जातियों को भाजपा के पक्ष में गोलबंद करने में सफल रहे थे। इस बार ये पिछड़ी जातियां भाजपा से छिटककर सपा और कांग्रेस के पक्ष में जाती दिखी। परिणामस्वरूप भाजपा 36 से भी कम सीटों पर सिमटती नजर आई। यही स्थिति पश्चिम बंगाल में रही।
महाराष्ट्र की जनता के बीच भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा
केंद्रीय नेतृत्व ने तृणमूल कांग्रेस आए शुभेंदु अधिकारी पर दांव खेला, लेकिन राज्य के पुराने दिग्गज अभी तक उन्हें अपना स्वीकार नहीं किया। यही कारण है कि ममता बनर्जी के खिलाफ भ्रष्टाचार के बड़े मामलों के खुलासे, 50 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी की बरामदगी और संदेशखाली जैसे मु्द्दों को भाजपा भुनाने में विफल रही और पिछली बार के प्रदर्शन से काफी पीछे रह गई।
इसी तरह से महाराष्ट्र में भाजपा के शीर्ष नेताओं को शिवसेना और राकांपा को लेकर देवेंद्र फडणवीस के प्लान पर संदेह तो पहले से था, लेकिन उसे सुधारने की कोशिश नहीं की गई। शिवसेना और राकांपा को तोड़ने से महाराष्ट्र की जनता के बीच भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा और उसका नतीजों पर असर भी दिखा। पूरे चुनाव के दौरान कई राज्यों में समन्वय की कमी साफ दिखी।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद उम्मीदवारों के चयन और चुनावी मुद्दों को सेट करने में विफलता लोकसभा चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ी।
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