वाराणसी, बीएनपी न्यूज। Kalbhairav Ashtami in Varanasi शनिवार को कालभैरव मंदिर में भक्तों ने 701 किलो का केक काटा। महाभैरवाष्टमी के पावन पर्व पर श्री लाट भैरव काशी यात्रा मण्डल के तत्वावधान में अष्ट भैरव प्रदक्षिणा यात्रा की गयी।भैरव प्राकट्योत्सव के अवसर पर कज्जाकपुरा स्थित लाट भैरव मंदिर से यात्रा प्रारम्भ की गई।संकल्प के साथ प्रारम्भ यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित रहे।डमरू नाद व शंख दल के साथ जय भैरव, बम भैरव, हर हर महादेव के गगनभेदी उद्गोष के साथ भक्तों ने असितांग भैरव, चंड भैरव, रुरु भैरव, क्रोधन भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव के दर्शन कर यात्रा संपन्न किया।बाबा श्री को अष्ट भोग अर्पित किए गए। भैरव अष्टमी के उपलक्ष्य में कमच्छा स्थित बटुक भैरव मंदिर में शनिवार को उनके विग्रह का भव्य श्रृंगार किया गया। प्रातःकाल चार बजे मंदिर के महंत राकेश पुरी ने विधिविधान के साथ बटुकभैरव का रुद्राक्ष व बेला के फूलों से भव्य श्रृंगार किया। आरती के बाद गर्भ गृह का पट दर्शनार्थ खोल दिया।
काल भैरव मंदिर की अपनी विशिष्ट महत्ता है, जिसे देश के ख्याति प्राप्त भैरव तीर्थों में प्रथम स्थान पर परिगणित किया जाता है। काशी तीर्थ के भैरव नाथ मुहल्ले में विराजमान काल भैरव को काशी तीर्थ का क्षेत्रपाल कहा जाता है और काशी के कोतवाल के नाम से इनकी प्रसिद्धि संपूर्ण जंबूद्वीप में है। यहां स्थल मार्ग (काशी विश्वनाथ से आगे) व जलमार्ग (गंगा के रास्ते नाव से होकर) दोनों से आना सहज है। भारतीय वांगमय में विवरण मिलता है कि ब्रह्मा और कृतु के विवाद के समय ज्योतिर्निगात्मक शिव का जगत् प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिवजी का अपमान किया तब उनको दंड देने के लिए उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने भैरव जी को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मा जी को दंड देने का आदेश दिया। सदाशिव ने भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा।
अजब है काशी। यहां की हर बात निराली है। दुनिया का अकेला ऐसा शहर जहां अष्ट भैरव, अष्ट विनायक, नौ गौरी और नौ दुर्गा के अलग अलग मंदिर हैं। इन मंदिरों में देवी और देवता के विग्रह का स्वरूप भी बिल्कुल अलग। यहां तक तो बात समझ में आती है लेकिन अगर इन देवी देवताओं के अलग अलग निमित्त से दर्शन पूजन का विधान तय हो तो बात अलौकिक सी हो जाती है।
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