BNP news desk । dress code कांवड़ यात्रा मार्ग पर खान-पान की दुकानों और ढाबों पर संचालकों के नाम लिखने के प्रदेश सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इसके बाद कांवड़ यात्रा मार्ग पर लगे पहचान बताने वाले बोर्ड हट गए हैं।
धर्म के आधार पर पहचान स्पष्ट करने का प्रयास पहली बार नहीं हुआ है। अकबर ने भी हिंदू-मुस्लिम के लिए ड्रेस कोड लागू किया था। हिंदुओं को अपने वस्त्र की आस्तीन में अलग रंग का पहचान चिह्न लगाना होता था।
dress code ताजमहल को शिव मंदिर, फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या माता मंदिर और जामा मस्जिद की सीढ़ियों में भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह दबे होने के वाद दायर करने वाले अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने यह दावा किया है।
उनका कहना है कि अकबर के दरबारी इतिहासकार अब्द-उल-कादिर बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ‘मुंतखब-उत-तवारीख’ में एक घटना का उल्लेख किया है। एक हिंदू, मुस्लिम के कपड़े पहनकर मुस्लिमों की बैठक में चला गया।
मुस्लिम समझकर वहां उसका सम्मान किया गया। जब इसकी सच्चाई पता चली तो मुस्लिम और काफिर के पहनावे से उसकी पहचान को ड्रेस कोड लागू किया गया। हिंदुओं को अपने वस्त्रों की आस्तीन में अलग रंग का पहचान चिह्न लगाने का आदेश दिया गया।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि हर व्यक्ति का यह मूल अधिकार है कि वह किससे खाना खरीदकर खाएगा। हिंदुओं में पूजा के दिनों में पवित्रता का महत्व होता है।
एक हिंदू अपनी पवित्रता की धार्मिक भावना के चलते होटल संचालक की सही पहचान जानकर ही संतुष्ट हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी पहचान छिपाकर खान-पान का व्यापार कर रहा है तो उसकी मंशा पर सवाल उठना जायज है।
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कांवड़ यात्रा मार्ग पर खान-पान की दुकानों और ढाबों पर संचालकों के नाम लिखने के प्रदेश सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
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