BNP NEWS DESK। Raksha bandhan 31 को छह घटी से कम मुहूर्त मिलने से पूर्व दिन में ही मनाना श्रेयस्कर: इस वर्ष श्रावणी उपाकर्म एवं रक्षाबंधन पर्व को लेकर पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण 30 या 31 अगस्त को लेकर समाज में भ्रम की स्थितियां हैं। सनातन धर्म में किसी भी व्रत पर्व या उत्सव का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति आदि की गणना करते हुए धर्म शास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था से किया जाता है।
इस बार उत्पन्न स्थिति पर विमर्श करते हुए काशी विद्वत परिषद, ज्योतष विभाग एवं धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग के विद्वानों ने धर्मशास्त्रों के आलोक में 30 अगस्त की रात में नौ बजे के बाद भद्रा पश्चात रक्षाबंधन का मुहूर्त निकाला है। ऐसे में इस बार रात में भाइयों की कलाइयों पर राखियां सजेंगी।
इस वर्ष श्रावणी पूर्णिमा 30 अगस्त की सुबह से आरंभ होने तथा 31 अगस्त की प्रातः छह घटी से न्यून होने के कारण भ्रम की स्थिति बन गई। कुछ विद्वान 30 तो कुछ 31 अगस्त को रक्षाबंधन एवं उपाकर्म मनाने का निर्णय देने लगे। इस भ्रम के निवारणार्थ काशी विद्वत परिषद, बीएचयू ज्योतिष विभाग एवं धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग की बैठक विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं ज्योतिष शास्त्र के सर्वमान्य मनीषी प्रो.रामचंद्र पांडेय की अध्यक्षता में शनिवार को हुई।
इसमें धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु आदि ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि यदि पूर्णिमा का मान दो दिन प्राप्त हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा छह घटी से कम प्राप्त हो रही हो तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए परंतु ‘इदं प्रतिपत् युतायां न कार्यम्’ अनुसार पूर्णिमा यदि प्रतिपदा से युक्त होकर छह घटी से कम हो तो रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए। इस वर्ष 31 अगस्त को पूर्णिमा छह घटी से कम है, 30 अगस्त की रात नौ बजे तक भद्रा है।
अतः 30 अगस्त की रात में भद्रा पश्चात रक्षाबंधन करना शास्त्र सम्मत होगा। क्योंकि ऐसी स्थिति में रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन का विधान शास्त्र देते हैं, ‘तत्सत्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते। रात्रौ भद्रावसाने तु रक्षाबन्धः प्रशस्यते।’
विद्वानों ने निर्णय दिया कि श्रावणी उपकर्म का अनुष्ठान शुक्लयजुर्वेद के तैतरीय को छोड़कर अन्य सभी शाखा वालों का धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार 30 तारीख को तथा तैतरीय शाखा वालों की उदय व्यापिनी पूर्णिमा में 31 को करना शास्त्र सम्मत रहेगा। बैठक में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो.गिरजा शंकर, पूर्व ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो.चंद्रमौली उपाध्याय, प्रो.रामजीवन मिश्र, प्रो.शत्रुघ्न त्रिपाठी, डा. सुभाष पांडेय, डा. सुशील गुप्ता, धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो.माधव जनार्दन रटाटे, प्रो. शंकर कुमार मिश्र, काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी आदि थे
। विषय उपस्थापन प्रो. विनय कुमार पांडेय ने किया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के न्यास परिषद के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने भी विभिन्न पंचांगों में प्रदत पूर्णिमा के मानों तथा धर्मशास्त्र के वचनों की समीक्षा करते हुए उपर्युक्त मत का समर्थन किया।
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