वर्ष 1983 में जब श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह से सोना चोरी हुआ और उसकी बरामदगी हुई, तब पहली बार काशी के कुछ मानिंद लोगों ने महाशिवरात्रि पर शिव बारात निकालकर शिव उत्सव मनाने का निर्णय लिया। यह यात्रा महामृत्युंजय मंदिर से शुरू होकर डेढ़सीपुल तक जाती है।
हर बार ज्वलंत मुद्दों को लेकर निकाली जाती हैं आकर्षक झाकियां
Shiv Baraat प्रथम शिव बरात समिति के संयोजक बनाए गए प्रसिद्ध अधिवक्ता स्व. केके आनंद एडवोकेट और सह संयोजक दिलीप सिंह। समिति में कवि धर्मशील चतुर्वेदी, सुशील त्रिपाठी, मोहम्मद इकराम खां, कैलाश केशरी, अमिताभ भट्टाचार्या थे। ये सभी लोग संस्थापक सदस्य रहे।
पहली बार जब शिव बारात निकाली गई तो सबसे बड़ी समस्या थी धर्मानुसार शिव लिंग को प्रवाहित नहीं किया जा सकता तो मोहम्मद इकराम खां ने पहला शिव लिंग सिन्नी पंखे का अरघा बनाकर तैयार किया।
Shiv Baraat उस समय यह भी तय हुआ की बरात किसी जाति या धर्म की न होकर पूरे काशी की बरात होनी चाहिए, क्योंकि जब शिव थे, उस युग में न हिंदू थे न मुस्लिम न सिख न ही ईसाई। उस समय सिर्फ दो तरह के लोग थे सद्जात और बदजात, यानी अच्छे लोग और बुरे लोग। इसी तर्ज पर सभी अच्छे लोगों को शिव बरात में आमंत्रित किया गया।
दूल्हा हिंदू और दुल्हन मुस्लिम और एक शाहबल्ला बनाया जानें लगा
Shiv Baraat काशी की गंगा जमुनी पहचान को कायम रखने के लिए पहले साल से ही प्रतीक रूप से दूल्हा हिंदू और दुल्हन मुस्लिम और एक शाहबल्ला बनाया जानें लगा। शुरुआती दौर में धर्मशील चतुर्वेदी दूल्हा और मोहम्मद इकराम उर्फ माई डियर दुल्हन और सांड बनारसी शहबल्ला बनाएं जाते रहे।
दुल्हन बदलती रही, माई डियर के देहांत के बाद कभी पूर्व रणजी खिलाड़ी जावेद अख्तर तो कभी अतीक अंसारी। धर्मशील चतुर्वेदी के निधन के बाद शाहबल्ला सांड बनारसी की तरक्की हुई और वे अब दुल्हा बनते है और व्यापारी नेता बदरुद्दीन अहमद दुल्हन और जगत डैडी अमरनाथ शर्मा शाहबल्ला।
बरात निकालते समय यह भी तय हुआ कि यह शोभायात्रा के जरिये समाज को कोई न कोई संदेश दिया जाए, इसलिए प्रति वर्ष दो ज्वलंत मामले झांकी के माध्यम से इस बारात में उठाए जाते हैं और जनता उसका इंतजार भी करती है। यह शिव बरात इस देश की पहली शिव बरात है इसकी लोकप्रियता के चलते ही आज सिर्फ बनारस में ही नही विदेश में भी शिव बरात निकाली जाने लगी है।
सिर्फ भारत में ही इस समय दस हजार से ज्यादा जगहों पर शिव बरात निकाली जा रही है। शिव बारात समिति का मानना है कि पूरी दुनिया के लोगों का बाबा भोलेनाथ से भगवान और भक्त का रिश्ता है लेकिन काशीवासियों का बाबा भोलेनाथ से पिता और पुत्र का रिश्ता है, इसलिए काशीवासी अपने परम पिता और माता पार्वती के विवाह को आजीवन यादगार बनाने के लिए प्रति वर्ष उनकी शादी की वर्षगांठ (महाशिवरात्रि) के दिन शिव बरात निकालकर उस दिन को अविस्मरणीय बनाने का प्रयास करते हैं।
शिव बरात में सिर्फ देश ही नहीं सात समुंदर पार से भी लोग आते हैं
इस वर्ष सर्वाधिक चर्चा में जी-20 होने के कारण उसे मुख्य मुद्दा में रखा गया है और आज कल सबसे ज्यादा पीड़ित आम आदमी मंहगाई से है इसलिए मंहगाई भी मुद्दा रहेगा। काशी पूरी दुनिया में अपनी मौज-मस्ती के लिए मशहूर है। इस अद्भुत शिव बारात में सिर्फ देश ही नहीं सात समुंदर पार से भी लोग आते हैं। इस बार शिव बारात में उन्हें काशी की ग्रामीण होली, मसाने की होली के साथ ही मथुरा और वृंदावन की होली की मस्ती भी देखने को मिलेगी।
अब 13 दिसंबर को भी नकलती है भव्य शोभायात्रा
शिव बरात समिति के संस्थापक व संयोजक दिलीप सिंह ने बताया कि काशी में शिव उत्सव मनाने का पूरा प्रयास करती है। श्रीकाशी विश्वनाथ नव्य-भव्य धाम के लोकार्पण के बाद समिति ने लोकार्पण दिवस को आजीवान यादगार बनाए रखने के लिए प्रति वर्ष 13 दिसंबर को शोभायात्रा निकालती है। पहली शोभा यात्रा लोकार्पण दिवस पर निकाली गई। इस बार इसका यह दूसरा वर्ष रहा। बाबा चाहेंगे तो आजीवन यह आयोजन होता रहेगा, ताकि देश और दुनिया को लोकार्पण तिथि सदैव याद रहे।
किसी से नहीं लेते सार्वजनिक चंदा
इस आयोजन की सबसे ख़ास बात यह है की 1983 से आज तक सार्वजनिक चंदा नही लिया जाता। समिति के लोग अपने पास से और अपने मित्रों के आर्थिक सहयोग से इस भव्य व विशाल आयोजन को करते हैं। समिति प्रति वर्ष लोगों से अपील करती है कि शिव बारात के नाम पर किसी को भी चंदा न दें।
झांकियों में दिखेगी जी-20 की झलक
जी-20 अंतराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है। इसमें दुनिया के बीस देश शामिल हैं। इसमें सभी तरह की आर्थिक समस्याओं पर विचार विमर्श तो होता ही है, जब सभी साथ बैठेंगे तो आतंकवाद, करोना जैसी गंभीर बीमारी पर सभी देश विचार मंथन करते हैं।
सबसे बड़ी बात है की इस बार जी-20 अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता अपना देश कर रहा है। देश में जी-20 की चर्चा चरम पर है लेकिन यह क्या है। इसे जानने वाले बहुत कम हैं। हम झाकियों के माध्यम से इसमें शामिल होने वाले देश और जी-20 क्या है, इसे बताने और होने वाले फायदे को बताने का प्रयास करेंगे।
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काशी की गंगा जमुनी पहचान को कायम रखने के लिए पहले साल से ही प्रतीक रूप से दूल्हा हिंदू और दुल्हन मुस्लिम और एक शाहबल्ला बनाया जानें लगा।
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