बीएनपी न्यूज डेस्क। वाराणसी के शिल्पी सदैव अपने आतिथ्य के लिए जाने जाते है और शिल्प जी आई पंजीकृत हो तो उत्साह दुगुना होता है ।तीन दिवसीय काशी यात्रा पर आए मॉरिशस के प्रधान मंत्री का अभिनन्दन उनके लिए यादगार होगा ।
पद्मश्री सम्मानित जीआई विशेषज्ञ डॉ रजनी कांत ने बताया कि उनके आगमन कि जानकारी मिलते ही दिशा निर्देश के अनुसार रामनगर निवासी स्टेट अवॉर्डी बच्चा लाल मौर्या शिल्पी कि टीम कुछ विशेष स्टोन जाली क्राफ्ट मे बनाने मे जुट गई और क्राफ्ट तैयार हुआ मॉरिशस का राष्ट्रीय पक्षी डोडो , और उसके अंदर भी जाली काट कर डोडो बनाया गया जिसे लगभग 8 दिन का समय बारीकी के साथ दिया गया और फिर नक्काशी ऊपर से कि गई। केसरिया रंग के बॉक्स मे पैक किया गया है।
इसी प्रकार जमालुद्दीन अंसारी और शादाब आलम द्वारा बनारस अंगवस्त्र पर जरदोजी विधि से मॉरिशस और भारत के झंडे को बनाकर उसपर दोनों देशों के नाम लिख कर झालर के साथ तैयार किया गया है । यह सभी लोग जी आई के आधिकृत यूजर भी है।
मॉरिशस के राष्ट्रीय पक्षी क्राफ्ट से काशी के शिल्पी लोगों के लिए व्यापर का एक नया मार्ग खुलेगा और अन्य जी आई क्राफ्ट भी यहाँ से मॉरिशस और वहां के व्यापारी वर्ग द्वारा अन्य देश मे पहुंचेगे।
डा रजनी कांत ने बताया कि मॉरिशस मे रहने वाले भोजपुरी समाज मे यहाँ के पूजा पात्र के साथ ही रेशम के वस्त्र और आभूषण , साड़ी कि मांग रहती है। लकड़ी के खिलौने भी अपनी पकड़ वहां बनाये हुए है। 2006 में बनारसी साड़ी को जीआइ दिलाने की शुरूआत हुई, जिसमें तीन साल लग गया। अब तक बनारस के 13 अलग अलग उत्पादों को जीआइ टैग मिल चुका है, जिससे बनारसी उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।
क्या होता है जीआइ टैग
जीआइ का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशेषता और प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन इसमें निहित होता है। जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) में बौद्धिक संपदा अधिकारों के तौर पर शामिल किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी समझौते के तहत होता है। राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
Discussion about this post