1989 में अजीत सिंह से मुलायम ने काफी चतुराई से मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छीन ली
इसी रैली में सबसे पहले सामने आया क्रांति रथ. रथ पर सवार थे उस वक्त के कितने ही राजनीतिक चेहरे. बहुगुणा जी इन बागियों के नेता थे. रथ में बैठे चेहरों में जनेश्वर मिश्र और मुलायम सिंह यादव Mulayam Singh Yadav भी थे. ये वो समय था जब साइकिल से चलकर दंगल और मास्टरी करने वाला सैफई का एक छोटे कद और मजबूत देह वाला व्यक्ति सूबे की राजनीति में एक बड़ा प्रतिमान बन रहा था. ये मुलायम सिंह के बड़े नेता बनने के शुरुआती दिनों की कहानी है. इसके बाद मुलायम सिंह ने राजनीति में कभी पलटकर नहीं देखा. 1989 में अजीत सिंह से मुलायम ने काफी चतुराई से मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छीन ली और सूबे को एक यादव मुख्यमंत्री मिल गया.
सरयू नदी के पुल से लेकर 30 अक्टूबर और 2 नवंबर तक के गोलीकांड दर्ज
कांग्रेस उखड़ रही थी. उत्तर प्रदेश से भी और केंद्र से भी. मंडल कमीशन Mandal Commission लागू होने और राममंदिर आंदोलन की आग में देश सुलग रहा था. आंदोलन हो रहे थे. आरक्षण के विरोध में और राममंदिर की स्थापना के लिए. मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने चेतावनी दी- बाबरी को गिराना तो दूर, बाबरी मस्जिद पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता… मुलायम के इस वचन में सरयू नदी के पुल से लेकर 30 अक्टूबर और 2 नवंबर तक के गोलीकांड दर्ज हैं और यहीं से मुलायम सिंह यादव को उनके विरोधियों ने नाम दिया- मुल्ला मुलायम.
मुलायम को एमवाई समीकरण दिया जो उनकी आखिरी सांस तक उनकी थाती रहा
विरोधियों के लिए जो नारा था, दरअसल वो ही मुलायम सिंह यादव की सबसे बड़ी ताकत बन गया. मुलायम के कुर्सी पर रहते कारसेवक मरे और कारसेवक मारे गए. और इसी क्रिया प्रतिक्रिया ने मुलायम को एमवाई समीकरण दिया जो उनकी आखिरी सांस तक उनकी थाती रहा. राजनीति के मुलायम अब मुसलमानों के सबसे मजबूत विकल्प बन चुके थे। इस विकल्प ने उत्तर प्रदेश की राजनीति से कांग्रेस को उखाड़ दिया. बाबरी तब गिरी जब मुलायम की जगह भाजपा के कल्याण सिंह Kalyan Singh सूबे के सरदार बन चुके थे.
बाबरी गिरी तो कल्याण की सरकार भी गिरी. लेकिन मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक किलेबंदी में बाबरी विध्वंस का तुरुप फेल हो गया और कांशीराम के कंधे पर पैर रख कर मुलायम फिर सूबे की सत्ता पर कायम हो गए. और राजनीति के अगले दो दशकों में मुलायम सिंह यादव दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. तीसरे दशक में ये साइकिल उनके बेटे टीपू ने पकड़ ली और साइकिल की गद्दी पर बैठे अखिलेश यादव 2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की गद्दी तक आसन्न हुए.
मुलायम जिस एक फोटो को अपने दिल में पलटकर रख चुके थे वो थी लोहिया की तस्वीर
मुलायम की राजनीति में जो एक चीज खो गई थी वो था समाजवाद. मुलायम जिस एक फोटो को अपने दिल में पलटकर रख चुके थे वो थी लोहिया की तस्वीर. मुलायम जिस एक फोटो को अपने दिल में पलटकर रख चुके थे वो थी लोहिया की तस्वीर. मुलायम जिस एक रास्ते से भटक गए थे, वो था साइकिल वाले समाजवाद का रास्ता. मुलायम जब गए हैं, कुनबा मेड़ की लड़ाई में उलझा हुआ है. मुलायम जब गए हैं, उनके रहने तक की आखिरी शर्म अब खुलकर नंगी हो सकती है. मुलायम अब जब गए हैं, उनकी पार्टी से संघर्ष की आखिरी पीढ़ी के बरगद का अवसान हो चुका है.
The Review
Mulayam Singh Yadav
मुलायम के कुर्सी पर रहते कारसेवक मरे और कारसेवक मारे गए. और इसी क्रिया प्रतिक्रिया ने मुलायम को एमवाई समीकरण दिया जो उनकी आखिरी सांस तक उनकी थाती रहा.
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