बीएनपी न्यूज डेस्क। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा 6 दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। सुभाष महोत्सव के दूसरे दिन लमही के सुभाष भवन में “सुभाष के न होने से भारत का विभाजन एवं उसकी त्रासदी : एक विश्लेषण” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर संगोष्ठी का शुभरम्भ किया।
विशाल भारत संस्थान के बच्चों ने इली भारतवंशी के नेतृत्व में सुभाष कथा का मंचन किया। आजाद हिन्द बटालियन की सेनापति दक्षिता भारतवंशी ने अपनी बटालियन के साथ अतिथियों को सलामी दी।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ० मृदुला जायसवाल ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए बताया कि सबसे बड़ी भूल आज़ादी के इतिहास लेखन में हुई है। जिनकी वजह से देश विभाजित हुआ उनके महिमा मंडन से देश के इतिहास को बहुत क्षति पहुंची है। देश के विभाजन के गुनाहगारों को सामने लाया जाएगा तभी असली नायकों का इतिहास लोग पढ़ पाएंगे।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह ने शोध व्याख्यान में कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की भूमिका सबसे बड़ी और परिणामदायक थी।
काशी और अयोध्या के बड़े संतो ने संगोष्ठी में हिस्सा लिया। संगोष्ठी की अध्यक्षता पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास जी महाराज ने की ।
नेताजी सुभाष के विचारों को अब मठों से भी प्रसारित किया जाएगा। बड़े धर्माचार्यो ने मिलकर लिया यह फैसला की देश की रक्षा के लिए सुभाष के विचारों की जरूरत है, इसलिए सभी मठ अपने मठों से सुभाष के साहित्य का प्रसार करें और देश की रक्षा के लिए संकल्प बद्ध हो। नेताजी सुभाष के अखण्ड भारत की सीमाओं की पुनर्वापसी के लिए विशाल भारत संस्थान के नेतृत्व में कई धर्माचार्य आगे आएंगे।
मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि जन जीवन के मानस पटल से एक नया सितारा उदय हुआ जिसे दुनियां सुभाष बाबू के नाम से जानती है। ब्रिटिश संसद बोलती है कि भारत को आजादी दे दिया गया लेकिन विभाजन के साथ आजादी की योजना को गुप्त रखा गया। भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण तो आजादी नहीं मिली क्योंकि वो सब थक हार चुके थे। विभाजन के लिये पक्ष चाहिए था तो जिन्ना के रूप में नया मोहरा मिला और विभाजन के लिये दंगे शुरू करवाए। नेहरू के नेतृत्व में भारत एवं जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की नींव रखी गयी। लेकिन सत्य सिर चढ़कर बोलता है और सत्य यही है कि सुभाष बाबू का अस्त नहीं होता तो भारत का विभाजन भी नहीं होता। नेहरू ने संधि की थी कि यदि सुभाष जिंदा मिले तो उन्हें ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया जाएगा। यदि नेहरू मानते थे कि सुभाष की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गयी है तो सुभाष को जिंदा सौंपने की संधि करने का गुनाह क्यों किया। 6 लाख बहु बेटियों की इज्जत लूटी गई, करोड़ों लोगों की हत्या हुई, लाखों लोग बेघर हो गए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के हस्ताक्षर से भारत का विभाजन हुआ। अतः नए संकल्प के साथ अखण्ड भारत के निर्माण के लिये साथ आना होगा।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष डा० राजीव श्रीगुरूजी ने कहा कि भारत विभाजन के जिम्मेदार लोगों और नेताओं का नाम तय करना पड़ेगा क्योंकि इनके गुनाह को किसी भी कीमत पर क्षमा नहीं किया जा सकता। साढ़े तीन करोड़ लोगों की मौत भारतीय इतिहास का कलंकित अध्याय है। अगर सुभाष बाबू होते तो साढ़े तीन करोड़ लोगों की जिन्दगी बच जाती और देश कभी नहीं बंटता।
संगोष्ठी में काशी के संतों की गरीमामयी उपस्थिति रही जिसमें महंत बालक दास जी, महंत अवध बिहारी दास जी, महंत महावीर दास जी, महंत सर्वेश्वर शरण दास जी, महंत श्रवण दास जी, महंत उमेश दास जी, महंत अवध किशोर दास जी, कोतवाल विजय राम दास जी, अयोध्या के महंत शम्भू देवाचार्य जी एवं गया की चून्नु साईं जी शामिल हुए।
कार्यक्रम में ज्ञान प्रकाश, अर्चना भारतवंशी, नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, खुशी रमन भारतवंशी, इली भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, डा० निरंजन श्रीवास्तव, डी०एन० सिंह, तपन घोष, तमाल सान्याल, दिलीप सिंह, सूरज चौधरी, देवेन्द्र पाण्डेय, कन्हैया पाण्डेय, ओम प्रकाश चौधरी, अंकुर तिवारी, प्रिंस उपाध्याय, निधि राय, लक्ष्मी, संजु गोंड, आभा पटेल, वैष्णवी श्रीवास्तव, आत्म प्रकाश सिंह, मयंक श्रीवास्तव, अनूप कुमार गुप्ता, श्रेया सिन्हा, डा० भोलाशंकर गुप्ता, कुंवर नसीम रजा खान आदि लोग मौजूद रहे।
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