बीएनपी न्यूज डेस्क। चीन के विकास पर अत्यधिक निर्भरता से कोई भी देश पूरी तरह से तबाह हो सकता है। यह बात पाकिस्तान और श्रीलंका की मौजूदा बदहाली ने बाकी देशों को समझा दी है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीन की ही प्रयोगशालाओं में तैयार की गई वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से पहली ही दुनिया आर्थिक बदहाली का शिकार है। उसके बाद की रही-सही कसर पड़ोसी देशों को सस्ता कर्ज बांट कर चीन ने उन्हें तबाह कर हड़पने की साजिशों से पूरी कर दी है।
ग्लोबल स्ट्रैट व्यू की रिपोर्ट के मुताबिक चीन से मिलने वाली सबसे बड़ी आर्थिक सहायता पाकर दो देशों की अर्थव्यवस्था में उछाल आने के बजाय वह वैश्विक आर्थिक संकट का सबसे बड़ा शिकार बन गए। वह भी तब जब यह वैश्विक आर्थिक संकट भी चीनी लैब में सृजित कोरोना संक्रमण की ही देन है। पाकिस्तान और श्रीलंका के अलावा चीन ने वियतनाम, थाईलैैंड, कंबोडिया,मेडागास्कर, मालदीव और ताजिकिस्तान जैसे देशों को भी बेहिसाब कर्ज दे रखा है, जो अब भी नहीं संभले तो उनका भविष्य भी पाकिस्तान और श्रीलंका जैसा हो सकता है।
विश्व बैैंक की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीन की कर्ज के जाल में फांसने की नीति पूरे विश्व में एक पैटर्न बना रही है। चीन के हर सुख-दुख का साथी पाकिस्तान इसका एक उदाहरण भर है। चीन अब तक दस देशों को अपना सबसे बड़ा कर्जदार बना चुका है। पाकिस्तान ने अपना सबसे ज्यादा कर्ज चीन से ही लिया था। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कारिडोर प्रोजेक्ट का मकसद पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट से जोडऩा है। यह परियोजना चीन के प्रमुख प्रोजेक्ट बीआरआइ से ओतप्रोत है।
विभिन्न विशेषज्ञों का कहना है कि चीन कर्ज के फंदे की कूटनीति का इस्तेमाल करके पाकिस्तान तक अपनी सामरिक पहुंच को बना लेगा। पाकिस्तान में जितने भी बुनियादी ढांचे संबंधी प्रोजेक्ट बन रहे हैैं वह सभी चीनी कर्ज के भरोसे चल रहे हैैं।
इसीतरह श्रीलंका ने भी वैश्विक महामारी के दौरान अपनी आर्थिक सामथ्र्य को चीनी कर्जे में दबाकर खो दिया है। पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था वाले श्रीलंका में आर्थिक बदहाली अपने चरमोत्कर्ष पर है। कर्ज के साथ ही श्रीलंका ने चीन की बीआरआइ (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) के तहत अपने दो प्रमुख बंदरगाहों हमबनतोता पोर्ट और कोलंबो पोर्ट सिटी को भी चीन को सौंप दिया है। चूंकि कर्ज नहीं चुका पाने की सूरत में उसे इन नियम शर्तों का पालन करना जरूरी है। संभवत: वर्ष 2021-22 में कोलंबो को बीजिंग को करीब दो अरब डालर चुकाने थे। इसके बाद 1.2 अरब डालर के लिए श्रीलंका ने हमबनतोता बंदरगाह को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया। पिछले कई सालों में इस कर्ज के बदले में श्रीलंका चीन को 12 अरब डालर से अधिक रकम दे चुका है।
एडडाटा की रिपोर्ट के अनुसार करीब 40 अर्थव्यवस्थाएं चीन के कर्ज के मकडज़ाल में फंस कर जर्जर हो चुकी हैैं और छिपे तौर पर चीनी लेनदारों का उनकी कुल जीडीपी पर दस फीसद से अधिक का कर्ज है। इनमें से कुछ देश लाओस, जाम्बिया और किर्गिस्तान भी हैैं, जिनपर उनकी जीडीपी का बीस फीसद चीनी कर्ज है। चीन हमेशा से आसान कर्ज के जाल का ऐसा फंदा डालता है कि आर्थिक रूप से कमजोर देश उसकी कथित दोस्ती पर भरोसा कर लेते हैैं।
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