BNP NEWS DESK। Jayant Narlikar खगोल विज्ञान में अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों और देश में प्रमुख शोध संस्थानों की स्थापना के लिए व्यापक रूप से जाने जाने वाले भारतीय विज्ञान जगत की महान हस्ती डा जयंत विष्णु नार्लीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया।
वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ा नुकसान
Jayant Narlikar वह 86 वर्ष के थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए उनके निधन को वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ा नुकसान बताया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नार्लीकर की पुत्री गिरिजा से बात कर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त कीं और उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करने के निर्देश दिए हैं।
पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों के अलावा महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित
पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों के अलावा महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित डा. नार्लीकर का बचपन काशी में बीता था। उन्होंने अंग्रेज खगोल विज्ञानी सर फ्रेड हायल के साथ मिलकर गुरुत्वाकर्षण का हायल-नार्लीकर सिद्धांत तैयार किया था, जिसने लोकप्रिय बिग बैंग सिद्धांत को चुनौती दी, जोकि ब्रह्मांड के निर्माण पर आधारित था।
बिग बैंग सिद्धांत के इस साहसिक विकल्प ने एक ऐसे ब्रह्मांड की अवधारणा प्रस्तुत की जो निरंतर विस्तारशील है तथा जिसमें निरंतर पदार्थ का निर्माण हो रहा है। इससे ऐसी बहसें शुरू हुईं, जिसने ब्रह्मांड संबंधी चर्चा को समृद्ध किया। Jayant Narlikar
डा. नार्लीकर ने तारों को देखा और ब्रह्मांड की कहानी को फिर से लिखा
वास्तव में यह कहना गलत नहीं होगा कि डा. नार्लीकर ने तारों को देखा और ब्रह्मांड की कहानी को फिर से लिखा। जब नार्लीकर साठ के दशक के अंत में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए तो वे कई दिग्गजों के संपर्क में आए। उनमें महान भौतिक व ब्रह्मांड विज्ञानी और लेखक स्वर्गीय स्टीफन हाकिंग भी शामिल थे।
नार्लीकर ने अपने गणितज्ञ पिता से मिली विरासत को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण शोध किए। उनके कार्य को विश्व के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों ने सराहा। Jayant Narlikar
भारत लौटने पर उन्होंने ‘इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फार एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आइयूसीएए) की स्थापना की और इसे वैश्विक स्तर पर उत्कृष्टता का केंद्र बनाया।नार्लीकर ने एक ओर खगोलशास्त्र में अपने महत्त्वपूर्ण शोधकार्यों से विज्ञान को समृद्ध किया, तो दूसरी ओर उनके लेखन ने विशेष रूप से किशोरों में विज्ञान के प्रति रुचि जगाई।
साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए
‘आकाशाशी जडले नाते’ और ‘चार नगरांतले माझे विश्व’ जैसी उनकी साहित्यिक कृतियों को साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए हैं। नेशनल सेंटर फार साइंस कम्युनिकेटर्स के महासचिव सुहास नाइक-साटम के अनुसार डा. नार्लीकर एक बेहतरीन विज्ञान प्रसारक थे। वे जटिल विषयों पर आम लोगों की भाषा में बोलते थे। उनकी किताबें जैसे द रिटर्न आफ वामन, द एडवेंचर, द कामेट बहुत लोकप्रिय रही हैं।
86 वर्षीय नार्लीकर के परिवार में उनकी तीन बेटियां – गीता, गिरिजा और लीलावती हैं। उनकी पत्नी प्रख्यात गणितज्ञ और शिक्षाविद् डा. मंगला नार्लीकर का निधन 17 जुलाई, 2023 को हो चुका है। Jayant Narlikar
नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हुई, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर गणित विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख थे।
मैथमेटिकल ट्रिपोस में रैंगलर और टायसन मेडलिस्ट का खिताब मिला
उनकी मां सुमति नार्लीकर संस्कृत की विद्वान थीं। स्कूल और कालेज में शानदार करियर के बाद उन्होंने 1957 में बीएचयू से बीएससी की डिग्री हासिल की। वे उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज गए, जहां उन्हें मैथमेटिकल ट्रिपोस में रैंगलर और टायसन मेडलिस्ट का खिताब मिला। उन्हें 1962 में स्मिथ पुरस्कार और 1967 में एडम्स पुरस्कार मिला।
वे 1972 तक कैम्ब्रिज में रहे, किंग्स कालेज के फेलो (1963-72) और इंस्टीट्यूट आफ थियोरेटिकल एस्ट्रोनामी के संस्थापक स्टाफ सदस्य (1966-72) के रूप में काम किया। इसके बाद वह टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर), मुंबई में शामिल होने के लिए भारत लौट आए। यहां उन्होंने 1972-1989 के बीच काम किया।
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