BNP NEWS DESK। Duplicate Medicine पेटेंट दवा कंपनियों के नाम से नकली दवाओं का कारोबार करने वाले अंतरराज्यीय गिरोह का राजफाश एसटीएफ ने किया।
Duplicate Medicine इसमें शामिल गिरोह के सरगना को गिरफ्तार कर लिया। उसकी निशानदेही पर भारी मात्रा में नकली दवा बरामद की। बरामद दवा की अनुमानित कीमत साढ़े सात करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस अवैध कारोबार से जुड़े अन्य की तलाश की जा रही है।
सिकंदराबाद निवासी गैंग का सरगना गिरफ्तार, अन्य की तलाश
Duplicate Medicine एसटीएफ के स्थानीय प्रभारी विनोद सिंह नकली दवा कारोबार की जानकारी मिलने पर कुछ महीनों से गैंग पर नजर बनाए हुए थे। गुरुवार को गैंग के सरगना अशोक कुमार के सिगरा थाना क्षेत्र के चर्च कालोनी में मौजूद होने की जानकारी मिली। टीम ने घेरेबंदी करके उसे एक मकान से गिरफ्तार कर लिया। उसकी निशानदेही पर मकान में रखी 108 पेटी नकली दवा बरामद की गई।
चार लाख चालीस हजार रुपये, कूटरचित बिल अन्य दस्तावेज तथा एक फोन बरामद किया गया। पूछताछ में मंडुआडीह थाना क्षेत्र के महेशपुर में गोदाम होने की जानकारी मिली। एसटीएफ ने गोदाम में छापा मारकर 208 पेटी नकली दवा बरामद की। गैंग के अन्य सदस्यों की तलाश कर रही है। गैंग सरगना अशोक कुमार बुलंदशहर के सिकंदराबाद थाना क्षेत्र के टीचर्स कालोनी का रहने वाला है।
हाईस्कूल फेल है गिरोह का सरगना
नकली दवा कारोबार करने वाले गिरोह का सरगना अशोक कुमार हाईस्कूल फेल है। उसने वर्ष 1987 में बुलंदशहर के किसान इंटर कालेज से हाईस्कूल की पढ़ाई की लेकिन फेल होने से पढ़ाई छोड़ दी और गद्दे की कंपनी में मजदूरी करने लगा। वर्ष 2003 में मजदूरी छोड़कर सात साल आटो रिक्शा चलाता रहा।
कमाई अच्छी नहीं होने के कारण फिर से गद्दे की कंपनी में नौकरी करने लगा और लगातार 10 वर्षो तक काम किया। काम के बदले उसे हर महीने 12 हजार रुपये मिलते थे। एक बार फिर से नौकरी छूट गई और वह फिर से आटो चलाने लगा।
ऐसे शुरू किया काला कारोबार
इसी दौरान उसकी मुलाकात बुलंदशहर के ही नीरज से हुई। वह नकली दवाओं का काम करता था। अशोक उसके माल की ढुलाई का काम करने लगा। यहीं से उसे इस काले कारोबार के बारे में जानकारी हुई। शुरू में उसने नीरज से थोड़ी बहुत नकली दवा खरीदकर स्थानीय झोलाछाप डाक्टरों को बेचने लगा। वर्ष 2019 में अमरोहा में नीरज की बेची गई नकली दवा पकड़ी गई।
नीरज का नाम आने के बाद पुलिस ने नीरज को पूछताछ के लिए पकड ले गई। इस मामले में नीरज के पिता ने पुलिसवालों पर अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था।
इसके बाद अशोक वहां से भागकर तीन वर्षों से वाराणसी में रोडवेज बस स्टेशन के पीछे चर्च कालोनी में किराए का कमरा व लहरतारा में गोदाम लेकर हिमाचल प्रदेश से नामी-गिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बनाने वाले हरियाणा के पंचकुला के अमित दुआ, हिमाचल प्रदेश के बद्दी के सुनील व रजनी भार्गव से संपर्क कर नकली दवाएं, फर्जी बिल्टी व बिल के जरिए ट्रांसपोर्ट के माध्यम से दवाएं मंगाने लगा।
60 रुपये में खरीदकर 600 रुपये में बेची जाती थीं नकली दवा
हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बनने वाली नकली दवाएं अशोक 60 से 100 रुपये में खरीदता था। इसे तीन से चार सौ रुपये में बेचता था। इसे खरीदने वाले दुकानदार इसे पांच से छह सौ रुपये में बेचते थे।
असली दवा की कीमत बाजार में एक हजार से 12 सौ रुपये होती है। बिल्कुल असली जैसी नजर आने वाली नकली दवाएं लगभग आधी कीमत में मिलने पर ग्राहक खास पूछताछ नहीं करते थे।
अशोक नकली दवाओं को प्रयागराज के रोहन श्रीवास्तव, पटना (बिहार) के रमेश पाठक, दिलीप, पूर्णिया के अशरफ, हैदराबाद के लक्ष्मण, वाराणसी शिवपुर के नीरज चौबे, डा. मोनू, रेहान, बंटी, आशापुर के शशांक मिश्रा, एके सिंह, सोनभद्र के न्यू बस्ती परासी के अभिषेक कुमार सिंह के साथ मिलकर अपने कमरे व गोदाम पर स्टोर करता था।
बसों पर माल रखने वाले कुलियों व बसों, ट्रांसपोर्ट के माध्यम से कोलकाता, उड़ीसा, बिहार, हैदराबाद व उत्तर प्रदेश के आगरा, बुलंदशहर में दवा कारोबार करने वालों को सप्लाई करता था।
बरामद हुईं ये दवाएं
मोनोसेफ ओ, गाबापिन एनटी, क्लावैम 625, पैन डी, पैन 40, सेफ एजेड, टाक्सिम ओ
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पेटेंट दवा कंपनियों के नाम से नकली दवाओं का कारोबार करने वाले अंतरराज्यीय गिरोह का राजफाश एसटीएफ ने किया।
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