BNP NEWS DESK। coalition equations अंत भला तो सब भला जैसे जुमले के साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन को बेशक अंजाम पर पहुंचा दिया हो, लेकिन कम से कम कांग्रेस के लिए यह अंत फिलहाल बहुत सुखद नहीं है।
coalition equations गठबंधन के समीकरण समझाकर जो कांग्रेस अब अपने जमीनी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का प्रयास करेगी, उसके सामने अपने बड़े नेताओं के मान मनौव्वल की भी चुनौती होगी। विंडबना यह है कि सपा के दांव से दबाव में आई कांग्रेस इस तरह बैकफुट पर थी कि अपने कई बड़े नेताओं के लिए भी गठबंधन में सीटें नहीं हासिल कर पाई।
उत्तर प्रदेश में कुल 80 संसदीय सीटों में से 17 पर कांग्रेस और 62 पर सपा लड़ेगी। एक सीट भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को दी जा सकती है। यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि कांग्रेस अब इन 17 सीटों पर किन-किन नेताओं को चुनाव लड़ा सकती है, लेकिन इस चर्चा ने कुछ बड़े नेताओं को पीछे धकेल दिया है, क्योंकि उनके दावे वाली सीटें सपा के खाते में चली गई हैं और कांग्रेस काफी प्रयास के बाद भी उन सीटों के लिए सपा को राजी नहीं कर पाई।
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, स्वयं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बलिया या घोसी सीट से लड़ना चाहते थे, क्योंकि वहां भूमिहार बिरादरी का अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस की ओर से प्रस्ताव भी दिया गया, लेकिन सहयोगी दल के प्रदेश अध्यक्ष तक के लिए सपा सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई। इसी तरह फर्रुखाबाद सीट कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद, फैजाबाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. निर्मल खत्री, रामपुर पूर्व सांसद बेगम नूर बानो, लखनऊ पूर्व सांसद राज बब्बर और भदोही पूर्व सांसद राजेश मिश्रा के लिए मांग रही थी। इनमें से कोई भी सीट सपा ने कांग्रेस के खाते में नहीं दी।
बड़े नेताओं की नाराजगी का संकेत
राजेश मिश्रा ने एक्स पर पोस्ट कर लिख भी दिया कि पार्टी के प्रति समर्पण और नेतृत्व के प्रति निष्ठा पर चाटुकारिता भारी पड़ रही है। इससे बड़े नेताओं की नाराजगी का संकेत मिलता है। अब माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को अनिच्छा से वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध लड़ना पड़ेगा।
राज बब्बर को गाजियाबाद या फतेहपुर सीकरी से उतारा जा सकता है, लेकिन अन्य नेताओं के लिए सीट नजर नहीं आ रही है। पार्टी पदाधिकारी मानते हैं कि प्रत्याशियों की तीन सूची जारी कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस हाईकमान को इशारा कर दिया कि सपा अकेले चुनाव मैदान में जाने को तैयार है। इसी दबाव में कांग्रेस नेतृत्व समझौते को मजबूर दिखाई दिया।
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अंत भला तो सब भला जैसे जुमले के साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन को बेशक अंजाम पर पहुंचा दिया हो
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