बीएनपी न्यूज डेस्क। Azamgarh Lok Sabha by-election आजमगढ़ उपचुनाव में लड़ाई त्रिकोणीय होने से मतदान से एक दिन पूर्व अंदरखाने में घमासान नजर आया। सपा मुखिया अखिलेश यादव के छोड़ने से खाली हुई सीट पर उन्हीं के परिवार के दिग्गज धर्मेंद्र यादव के मैदान में उतरने के कारण उत्साहित कार्यकर्ताओं को उनका इंतजार था, जो निश्चित रूप से कमजोर पड़ा होगा। भाजपा के दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और बसपा के उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गड्डू जमाली भी जीत को जोर लगा रहे हैं। मतदान की तैयारियों में प्रशासन का भी उत्साह नजर आया। बूथों को रवाना होते कर्मचारी, ईवीएम व वीवीपैट लिए जा रहे सहायक रिटर्निंग अफसरों का रेला और सुरक्षा के साजो-सामान के साथ जवानों का रेला वाकई चुनावी मेला जैसा लग रहा था।
आजमगढ़ संसदीय सीट के लिए 23 जून को 18,38,930 वोटर मतदान करेंगे। अखिलेश की कमी के बावजूद धर्मेंद्र की दमदारी को उनके विधायक बखूबी साथ दिए हैं। त्रिकोणीय लड़ाई में बसपा मुखिया मायावती के न आने से सपा की उम्मीदें कमतर नहीं आंकी जा सकतीं। दरअसल, बसपा से दूसरी बार मैदान में ताल ठोंक रहे मुस्लिम चेहरा शाह आलम से पार्टी को उम्मीदें हैं, तो भाजपा वोटों के बिखराव से उम्मीदें संजोए बैठी है। चुनाव में शुचिता के लिए 1149 मतदान केंद्र और 2176 बूथों को 15 जोन व 137 सेक्टर में बांट 20 हजार जवानों की ड्यूटी लगाई गई है। तीन एएसपी, सात सीओ और 550 इंस्पेक्टर, दारोगा सुरक्षा में लगाए गए हैं। बूथों की सुरक्षा का जिम्मा पैरामिलिट्री तो बाहरी क्षेत्र की सुरक्षा पुलिस संभालेगी।
मतों के बिखराव की जंग में भाजपा को भी 12 फीसद वोटरों से आस-मतदान से ठीक पहले अल्पसंख्यक बस्ती में दिखी हलचल
वोटाें के महारथी अपने-अपने जाति-धर्म के मतदाताओं को मथकर चले गए। कौन कितना सफल रहा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन पक्की बात यह है कि जीत-हार का निर्धारण तो मुस्लिम मतदाता ही करेंगे। यही वजह है कि सपा, बसपा के साथ भाजपा भी चुनावी अंकगणित में 12 फीसद वोटरों से आस लगाए बैठी है। पूर्व के चुनावी आंकड़े गवाह हैं कि इन्होंने ने ही प्रत्याशियों के माथे पर जीत का सेहरा बांधा है।
संभवत: यही वजह रही कि चुनाव प्रचार का शोर थमने के बावजूद अल्पसंख्यकों की बस्ती की हलचल बुधवार को तनिक कमजोर पड़ती नजर नहीं आई…। सदर संसदीय क्षेत्र अंतर्गत मेंहनगर, मुबारकपुर, सगड़ी, सदर, गोपालपुर में 1838930 मतदाता सांसद चुनने को वोट करेंगे। एक अनुमान के मुताबिक 2.20 लाख मुस्लिम मतदाता हैं। 33 फीसद पिछड़ा, 27 फीसद सवर्ण एवं 24 फीसद अनुसूचित जाति के मतदाताओं में, जिसके साथ मुस्लिम हुए उसी की नैया पार लग जाती है। आंकड़े गवाह हैं कि वर्ष 2014 में मुलायम सिंह लड़े थे, तब बसपा ने मुस्लिम चेहरा गुड्डू जमाली तो भाजपा ने दिग्गज रमाकांत यादव को उतारा था।
मुलायम सिंह 70 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। वर्ष 2019 की चर्चा इसलिए जरूरी नहीं कि उस समय गठबंधन के प्रत्याशी मैदान में ताल ठोंके थे। उपचुनाव में अबकी जब फिर से प्रत्याशी अकेले-अकेल ताल ठोंक रहे, तो मुस्लिम मतदाताओं के रूख का तामपान फिर से मापना उचित है। बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली फिर से मैदान में हैं। सपा ने धर्मेंद्र यादव, भाजपा ने लोहे से लोहा काटने के लिए दिनेश लाल यादव निरहुआ को उतारा है। सपा, बसपा, भाजपा तीनों ने विभिन्न जाति एवं धर्म के क्षत्रप चुनाव प्रचार में उतारे थे। एक बात खास है कि स्टार प्रचारकों में शामिल रहे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव, बसपा मुखिया मायावती नहीं आईंं।
भाजपा ने मंत्रियों की पूरी फौज उतारी तो उनकी लड़ाई को दिशा देने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो सभाएं की। सपा ने भी रामगोपाल यादव, अबु आसिम, आजम खान, ओमप्रकाश राजभर, ओमप्रकाश सिंह को उतार लड़ाई को मजबूत बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बसपा अपने बूते पूरे चुनाव में जोर आजमाइश करती रही। मतदान से ठीक एक दिन पूर्व भी कहीं चुनावी हलचल नजर आई तो मुस्लिम बस्तियों में, क्योंकि उन्हीं का रुख करेगा जीत-हार का निर्धारण।
Discussion about this post