BNP NEWS DESK। Jaishankar साल 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में विदेश मंत्री बनाए गए एस जयशंकर नौकरशाह परिवार से आते हैं। उनके दादा, चाचा और भाई सभी नौकरशाह रहे हैं। उन्होंने खुद भी लंबे समय तक विदेश सेवा में अपना योगदान दिया है।
Jaishankar जयशंकर के पिता भी सचिव थे। हालांकि इंदिरा गांधी ने दोबारा सत्ता पाने के बाद साल 1980 में जयशंकर के पिता डॉ के सुब्रह्मण्यम को पद से हटा दिया था। इसके अलावा राजीव गांधी की सरकार में भी उनके साथ ऐसा ही हुआ।
खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एएनआई के साथ साक्षात्कार के दौरान यह वाकया बताया। उन्होंने राजनयिक से राजनेता बनने पर भी विस्तार से चर्चा की। विदेश सचिव के बाद अचानक विदेश मंत्री बनाए जाने का फैसला सभी के साथ उनके लिए भी हैरान करने वाला था। उन्होंने खुद इसे स्वीकार किया।
सबसे अच्छा विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था
विदेश मंत्री ने कहा कि मैं एक ब्यूरोक्रेट परिवार में पैदा हुआ था ऐसे में हमेशा से मैं सबसे अच्छा विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था और मेरे दिमाग में बेस्ट का मतलब था फॉरेन सेक्रेटरी के पद तक पहुंचना। मेरे पिता भी सचिव हो गए थे।
उन्होंने कहा कि हमारे घर में भी ऐसा ही माहौल था। हालांकि ऐसा करने के लिए कोई पारिवारिक दबाव नहीं था, लेकिन हम सभी इस बात को जानते हैं कि मेरे पिता जो एक नौकरशाह थे, उस समय सचिव बन गए थे। वह उस समय 1979 में जनता सरकार में शायद सबसे कम उम्र के सचिव बने थे। हालांकि इंदिरा गांधी ने सत्ता में दोबारा वापसी के तुरंत बाद उन्हें सचिव पद से हटा दिया था।
1980 में वह रक्षा उत्पादन सचिव थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सत्ता में वापसी के दौरान वह पहले सचिव थे जिन्हें उन्होंने हटाया था। वह रक्षा पर सबसे अधिक जानकार व्यक्ति थे। जयशंकर ने आगे कहा कि ‘इसके अलावा उनके पिता डॉ के सुब्रह्मण्यम बहुत ईमानदार व्यक्ति भी थे, हो सकता है कि समस्या इसी वजह से हुई हो, मुझे नहीं पता’।
राजीव गांधी के कार्यकाल में भी ऐसा ही हुआ
विदेश मंत्री एस Jaishankar ने आगे कहा कि पिता के बारे में तथ्य यह है कि एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने हमेशा नौकरशाही में अपना करियर देखा, जो वास्तव में 1980 में रुक गया था। उसके बाद वह फिर कभी सचिव नहीं बने। बाद में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब भी उनके साथ कुछ ऐसा ही हुआ।
उस दौरान उन्हें अपने से जूनियर के लिए हटा दिया गया। उनके जूनियर को कैबिनेट सचिव बना दिया गया। यह कुछ ऐसा था जिसे उन्होंने हमेशा महसूस किया। उन्होंने आगे कहा कि शायद ही कभी इसके बारे में हमारे घर पर बात हुई। ऐसे में जब मेरे बड़े भाई सचिव बने तो उन्हें बहुत गर्व हुआ था।
पिता के निधन के बाद एस जयशंकर बने सचिव
अपने सचिव बनने के बारे में एस जयशंकर ने बताया कि साल 2011 में मेरे पिता के निधन के दौरान मैं ग्रेड-1 अधिकारी था। एक राजदूत की भूमिका में। उस समय मैं सचिव नहीं बना था। पिता के निधन के बाद मैंने वह भी पा लिया।
मैं विदेश सचिव बन गया था। जैसा कि मेरा उस समय का लक्ष्य था। अपना लक्ष्य हासिल करने के बाद 2018 तक मैं बेहद खुश था। इसके बाद मैं टाटा संस में चला गया। टाटा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि मैं उन्हें पसंद करता था और शायद वो भी मुझे पसंद करते थे।
राजनीति में एंट्री पर भी बोले जयशंकर
राजनीति में जाने के बारे में बताते हुए विदेश मंत्री एस Jaishankar ने आगे कहा कि जब मैं टाटा में था उसी 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा मुझे कॉल किया गया। Jaishankar ने कहा कि इस प्रस्ताव को सुनते ही वे चौंक गए थे।
यह मेरे लिए एकदम अप्रत्याशित था। मैनें जीवन भर राजनेताओं को देखा था लेकिन, खुद के लिए इस भूमिका के बारे में कभी नहीं सोचा था। और उस समय मैं संसद सदस्य भी नहीं था । विदेश सेवा में राजनेताओं के साथ काम करना यह एक बात है लेकिन वास्तव में राजनीति में शामिल होना, मंत्री बनना और राज्यसभा में जाना यह दूसरी बात। हालांकि मेरा अनुभव मेरे काम आया। उन्होंने कहा कि आप दूसरों को देखकर सीखते हैं।
किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने का था विकल्प
Jaishankar ने कहा कि जब वह मंत्री बने तो उनके पास राजनीतिक दल में शामिल होने या न होने का विकल्प था। इसे लेकर कोई बाध्यता नहीं थी। उस समय मैनें सभी के बारे में विचार किया और आखिर में मैं भाजपा में शामिल हो गया।
उन्होंने कहा कि जब आप किसी टीम में शामिल होते हैं, तो आप इसमें पूरे दिल से शामिल होते हैं। अगर ऐसा होता है तो ही आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देते हैं। उन्होंने कहा कि मैं आज वास्तव में मानता हूं कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो भारत की भावनाओं और उसके हितों और आकांक्षाओं पर सबसे बेहतरीन तरीके से काम करती है।
बेहद दिलचस्प रहा है नेता के रूप में अब तक का समय
1977 में विदेश सेवा में शामिल होने वाले विदेश मंत्री एस जयशंकर गुजरात से राज्यसभा में भाजपा के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि यह चार साल बहुत दिलचस्प रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह बहुत सावधानी से देखते हैं कि मेरी पार्टी और अन्य पार्टियों के लोग क्या कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जब मैं इन चार सालों को देखता हूं, तो मेरे लिए वास्तव में यह चार साल बहुत कुछ सीखने के रहे है। एक ऐसी अवस्था में जानना जिसके बारे में मुझे वास्तव में बहुत कम जानकारी थी। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि मैं बहुत कम ही लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से मिलता हूं, यहां तक कि कभी-कभी मुझे उकसाया भी जाता है।
ब्यूरोक्रेट से नेता बनना चुनौतीपूर्ण- जयशंकर
साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाही की तुलना में केंद्रीय मंत्री के रूप में एक्सपोजर का एक अलग स्तर है। यह पूछे जाने पर कि एक विदेश सेवा अधिकारी और एक मंत्री और एक राजनेता के रूप में डॉ. जयशंकर के सोचने और कार्य करने के तरीके में क्या कोई अंतर था? इस पर उन्होंने कहा कि यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कुछ चुनौती थी। यह अलग-अलग जीवन की तरह है।
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साल 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में विदेश मंत्री बनाए गए एस जयशंकर नौकरशाह परिवार से आते हैं।
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