BNP NEWS DESK। Ramsetu रामायण में वर्णित रामसेतु को लेकर केंद्र की मोदी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। सरकार ने गुरुवार को संसद में बताया कि भारत और श्रीलंका के बीच जहां पौराणिक रामसेतु के अस्तित्व के बात की जाती है वहां सैटेलाइट तस्वीरों में द्वीप और चूना पत्थर ही दिखाई दे रहे हैं। इन्हे राम सेतु के अवशेष का ‘सटीक प्रमाण’ नहीं कहा जा सकता है।
यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही रामसेतु के अवशेष हैं
अंतरिक्ष राज्य मंत्री गुरुवार को भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के रामसेतु पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा- जिस जगह पर पौराणिक रामसेतु होने का अनुमान जाहिर किया जाता है, वहां की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई हैं। छिछले पानी में आइलैंड और चूना पत्थर दिखाई दे रहे हैं, पर यह दावा नहीं कर सकते हैं कि यही रामसेतु के अवशेष हैं।
रामसेतु पर स्पेस मिनिस्टर का जवाब- 18 हजार साल पुराना इतिहास, हमारी भी सीमाएं हैं
जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में कहा, ‘टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ हद तक हम सेतु के टुकड़े, आइलैंड और एक तरह के लाइम स्टोन के ढेर की पहचान कर पाए हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह पुल का हिस्सा हैं या उसका अवशेष हैं।’
उन्होंने कहा- मैं यहां बता दूं कि स्पेस डिपार्टमेंट इस काम में लगा हुआ है। रामसेतु के बारे में जो सवाल हैं तो मैं बताना चाहूंगा कि इसकी खोज में हमारी कुछ सीमाए हैं। वजह यह है कि इसका इतिहास 18 हजार साल पुराना है और, अगर इतिहास में जाएं तो ये पुल करीब 56 किलोमीटर लंबा था।
सरकार ने अपना हलफनामा वापस लिया
Ramsetu 2007 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह सेतु इंसानों ने बनाया है। जब इस मुद्दे पर विरोध और धार्मिक भावनाएं भड़कने लगीं तो सरकार ने अपना हलफनामा वापस ले लिया।
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रामायण में वर्णित रामसेतु को लेकर केंद्र की मोदी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है।
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