बीएनपी न्यूज डेस्क। Mamata Banerjee अगले लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनने लगा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वैसे तो कांग्रेस के साथ मिलकर विपक्ष की एकजुटता की बात करती हैं, लेकिन उनकी पार्टी तृणमूल ने साफ कर दिया है कि दिल्ली की दावेदारी को लेकर समझौता नहीं किया जाएगा। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले हैं। टीएमसी का कहना है कि नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी को खड़ा करने का मॉडल पूरी तरह फेल है।
शराब नीति को लेकर सीबीआई की कार्रवाई हुई तो आम आदमी पार्टी ने कहा कि केंद्र में बैठी भाजपा को अरविंद केजरीवाल से डर लग रहा है और साल 2024 का लोकसभा चुनाव ‘नरेंद्र मोदी Vs अरविंद केजरीवाल’ होगा। इस बीच ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले हैं। टीएमसी का कहना है कि नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी को खड़ा करने का मॉडल पूरी तरह फेल है। वहीं भाजपा को रोकने के लिए विपक्षी दलों के महागठबंधन पर भी टीएमसी ने सवाल खड़ा किया है। पार्टी का मानना है कि बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़कर अन्य किसी राज्य में इस तरह के गठबंधन की जरूरत नहीं है।
दरअसल तृणमूल के अखबार जागो बांग्ला ने शुक्रवार को एक आर्टिकल पब्लिश किया है जिसकी हेडिंग है- ‘राहुल गांधी विफल, ममता हैं विकल्प’…इस लेख में तृणमूल के लोकसभा सांसद सुदीप बंधोपाध्याय, प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए लिखते हैं- देश विकल्प तलाश रहा है। मैं राहुल गांधी को लंबे समय से जानता हूं, लेकिन कह सकता हूं कि वे मोदी के विकल्प के तौर पर पहचान बनाने में नाकाम रहे हैं। वहीं ममता बनर्जी इस मोर्चे पर सफल रही हैं।
कांग्रेस का जवाब- अभी विकल्प की बात करना जल्दबाजी
Mamata Banerjee तृणमूल के दावे पर अब विवाद शुरू हो गया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने कहा है ऐसे बयानों को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है, अभी ये कहना जल्दबाजी है कि मोदी का विकल्प कौन होगा?
बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते कि कौन सफल है और कौन नहीं। अभी 2021 चल रहा है और लोकसभा चुनाव 2024 में होने हैं। अधीर रंजन का कहना है कि राहुल गांधी 2014 से ही मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के सबसे उपयुक्त नेता के तौर पर पहचान बनाए हुए हैं।
वहीं कांग्रेस के सीनियर नेता और सांसद प्रदीप भट्टाचार्य का कहना है कि विपक्ष को सबकी सहमति से तय करना चाहिए कि उनका आम नेता कौन होगा? भारतीय राजनीति का इतिहास गवाह है कि गठबंधन में सहयोगी दलों ने हमेशा सर्वसम्मति से ही नेता चुना है। इसलिए इस मुद्दे पर कई विचार हो सकते हैं, लेकिन इनमें से किसी को आखिरी फैसला नहीं कह सकते।
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