BNP NEWS DESK। carbon emission भारत में जर्मन दूतावास की ओर से वाराणसी सहित पांच अन्य माडल शहरों में अपशिष्ट समाधान परियोजना की रूपरेखा को प्रस्तावित किया गया है। इस बाबत रिसाइकल किए जाने योग्य अपशिष्टों के निस्तारण के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का भी प्रयास किया जा रहा है।
carbon emission इसी कड़ी में जर्मन दूतावास की ओर से एक रिपोर्ट वाराणसी के संदर्भ में जारी की गई है। रिपोर्ट में वाराणसी में गंगा में नौका पर बड़ी प्लास्टिक की बोतल पर लिखे संदेश के साथ लोगों को जागरुक करने के प्रयास के अलावा घाटों पर साफ सफाई के लिए हो रहे प्रयासों को भी साझा किया गया है।
बताया गया है कि इस तरह के जागरूकता अभियानों के साथ कुशल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कचरों को श्रेणी बनाकर अलग करने को बढ़ावा देने से पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सहायता मिल सकती है। कार्यक्रम की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए बताया गया कि देश के 1.2 अरब लोगों में से एक तिहाई शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। carbon emission
जहां सालाना लगभग 62 मिलियन टन नगरपालिका या निगम ठोस कचरा का भार ढो रहे हैं। यह मात्रा वर्ष 2030 तक 165 मिलियन टन प्रति वर्ष तक पहुंचने की उम्मीद है। परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी वर्ष 2030 तक 41 मिलियन टन यानी करीब दोगुना होने की उम्मीद है।
कचरे का अनियोजित निस्तारण
जारी रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अधिकांश कचरों का निपटान लैंडफिल या अप्रबंधित डंपसाइटों पर होने से न केवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बल्कि अन्य पर्यावरणीय, सामाजिक और अन्य समस्याओं का कारण भी बनता है। वहीं इसकी वजह से वर्तमान में कचरे से खाद, रिसाइकिल सुविधा, बायोमेथेनेशन और कचरे के निस्तारण में भी बाधा की नौबत आ रही है। carbon emission
नीतियों को जमीन पर उतारने का प्रयास
वाराणसी सरीखे शहर के संदर्भ में अपशिष्ट के निस्तारण में बाधाओं को दूर करने के लिए स्रोत पर ही कचरों को पृथक करने का अभाव, प्रबंधन क्षमताओं में कमी, अपशिष्ट संरचना के संबंध में डेटा की कमी के अलावा नियमों और नीतियों के अपर्याप्त वित्तपोषण और निस्तारण में कमी को चिन्हित किया गया है। जर्मनी के सहयोग से शुरू परियोजना में लक्ष्य तय करते हुए निवेश बढ़ाने, पर्यावरणीय जोखिम कम करने, नियामक ढांचे को मजबूत कर अपशिष्ट के निस्तारण से कार्बन उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित करने की तैयारी है। इसमें रिसाइकिल करने की परियोजना के हितधारकों की भागीदारी के लिए प्लेटफार्मों की सुविधा देने की तैयारी है।
माडल शहरों में सुविधाएं बढ़ाने पर जोर
परियोजना में वाराणसी के अलावा बेंगलुरु, पटना, तिरुचिरापल्ली और गोवा को शामिल किया गया है। शहरों में निकलने वाले कचरों को मौके पर पृथक करने का सिस्टम बनाने, अर्ध-मशीनीकृत कार्यप्रणाली, रीसाइक्लिंग सुविधाओं को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। जैविक अपशिष्ट को निस्तारित कर खाद बनाने की योजना भी शामिल है।
परियोजना में अनुदान निधि तंत्र और जोखिम को साझा करने को भी शामिल किया गया है। उद्देश्य प्राप्त करने के लिए अपशिष्ट प्रबंधन कंपनियों की पूंजी निवेश, कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए धन की भी उपलब्धता बढ़ाने की तैयारी है। भारत में जर्मनी के सहयोग से चलने वाली परियोजना के लिए सालाना अनुदान भी मिलेगा। अपशिष्ट निस्तारण के लिए तीस फीसद या 63 रुपये प्रति टन की सीमा भी तय की गई है। इससे देश के इन पांच शहरों में प्रारंभिक तौर पर एक मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन में कटौती होने की उम्मीद है।
सालिड वेस्ट निस्तारण अब समस्या नहीं
वाराणसी में प्रतिदिन औसत 800 से 1000 मीट्रिक टन सालिड वेस्ट निकलता है। सिर्फ दो सालिड वेस्ट प्लांट की क्षमता करीब 1200 मीट्रिक टन कूड़े की है। एनटीपीसी द्वारा संचालित करसड़ा स्थित वेस्ट टू कंपोस्ट प्लांट की क्षमता 600 मीट्रिक टन कूड़ा निस्तारण की है। कानपुर के फर्टिलाइजर कंपनी को यहां की खाद भी बेची जा रही है।
इसके अलावा रमना में कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइन सर्विसेज (सीएंडडीएस) प्लांट की क्षमता 200 मीटिक टन सालिड वेस्ट की है। इस प्लांट में मकान के मलबे से इंटरलाकिंग ईंट के ब्लाक व टाइल्स बन रहे हैं। इसी प्रकार आइडीएच-कज्जाकपुरा, पहड़िया मंडी प्लांट व भवनियां पोखरी स्थित वेस्ट टू एनर्जी प्लांट (कूड़े से बिजली बनाने का प्लांट) में प्रतिदिन पांच-पांच टन कूड़े से 800-800 यूनिट बिजली उत्पादन की क्षमता है।
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भारत में जर्मन दूतावास की ओर से वाराणसी सहित पांच अन्य माडल शहरों में अपशिष्ट समाधान परियोजना की रूपरेखा को प्रस्तावित किया गया है।
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