BNP NEWS DESK। Shringar Gauri वाराणसी में ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में हिंदू पक्ष के हक में फैसला आया है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने सुनाया है । राखी सिंह तथा नौ अन्य महिलाओं ने पूजा के अधिकार के लिए वाराणसी की जिला अदालत में सिविल वाद दायर किया था।
Shringar Gauri अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी, वाराणसी ने वाद की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की थी कि कोर्ट को प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 के उपबंधों के तहत अदालत को वाद सुनने का अधिकार नहीं है। जिला अदालत ने कमेटी की अर्जी खारिज कर दी थी जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। फैसला दिसंबर में सुरक्षित कर लिया गया था।
मस्जिद पक्ष की दलीलों से सहमत नहीं होने पर खारिज किया था प्रार्थना पत्र
ज्ञानवापी परिसर स्थित मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन समेत अन्य मांग को लेकर दाखिल मुकदमे की पोषणीयता पर हाईकोर्ट से पहले जिला जज की अदालत ने पिछले वर्ष 12 सितंबर को आदेश दिया था।
अपने आदेश में जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा था कि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद मुकदमे को प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991, वक्फ एक्ट 1995 और यूपी श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट 1983 से बाधित होना साबित नहीं कर सकी है। इसलिए उनके मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं होने का आवेदन खारिज करने योग्य है।
26 पेज के आदेश में जिला जज ने पोषणीयता (मुकदमा सुनने योग्य है या नहीं) पर दोनों पक्षों की ओर से हुई बहस के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया था। प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से दलील दी गई थी कि भूखंड संख्या 9130 (विवादित स्थल) पर मौजूद मस्जिद में 600 वर्षों से मुसलमान नमाज अदा करते रहे हैं।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 में यह प्रावधान है कि पूजा स्थल उसी स्थिति में रहेंगे जिसमें वे 15 अगस्त 1947 को थे। यह एक वक्फ संपत्ति है और यह वक्फ संख्या 100 (वाराणसी) के रूप में वक्फ में दर्ज है।
इस पर वादी पक्ष की ओर से कहा गया कि उस भूखंड पर मस्जिद नहीं है। पूरी संपत्ति अनादि काल से देवता में निहित है। यहां मंदिर रहा है। उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के अनुसार यूपी राज्य विधानमंडल ने मंदिर की परिभाषा के तहत ज्योतिर्लिंग के अस्तित्व को मान्यता दी है जो विवादित ढांचे के नीचे मौजूद है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या के मामले में बताया है कि एक उपासक किसी देवता के हितों की रक्षा के लिए मुकदमा कर सकता है।
वादी पक्ष ने कहा कि बिना किसी लिखित आदेश के वर्ष 1993 में मां शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन को रोक दिया गया। वादी पक्ष ने डा. एम इस्माइल फारूकी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तर्क दिया कि मस्जिद किसी प्रथा का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। मुसलमानों द्वारा नमाज कहीं भी, यहां तक कि खुले में भी पढ़ी जा सकती है।
वहीं प्रतिवादी ने तर्क दिया कि दीन मोहम्मद और अन्य बनाम राज्य के सचिव के केस में अदालत ने माना कि है ज्ञानवापी मस्जिद और आंगन के नीचे की जमीन मुस्लिम वक्फ है। बहस के दौरान वादी पक्ष के वकील ने राम जानकीजी देवताओं और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य 1999 (5) मुकदमे के फैसले का भी हवाला दिया।
इसमें यह माना गया था कि मंदिर बनाने के लिए यह पर्याप्त है कि यह सार्वजनिक धार्मिक पूजा का स्थान है और अगर लोग इसकी धार्मिक प्रभावकारिता में विश्वास करते हैं। भले ही कोई मूर्ति हो या कोई संरचना या अन्य सामग्री है। यह पर्याप्त है कि अगर भक्तों या तीर्थ यात्रियों को लगता है कि कोई अलौकिक शक्ति है जिसकी उन्हें पूजा करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
21 तारीखों तक चलीं दोनों पक्षों की दलीलें
बनारस कचहरी के इतिहास में पहली बार किसी मुकदमे की पोषणीयता को लेकर काफी लंबे समय तक सुनवाई चली। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी। इसके पहले यह मामला सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रविकुमार दिवाकर की अदालत में चल रहा था।
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वाराणसी में ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में हिंदू पक्ष के हक में फैसला आया है।
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