BNP NEWS DESK। State election 2024 महाराष्ट्र में महायुति(राजग) की आंधी आई तो झारखंड में झामुमो के असर के सामने राजग की सारी रणनीति धुल गई। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक एक की बराबरी पर सिमट गया। अच्छी बात रही कि जनता ने जिसे भी चुना स्पष्ट बहुमत दिया ताकि सरकार स्थायी हो। लेकिन हरियाणा की अचंभित जीत के एक-डेढ़ महीने के अंदर ही महाराष्ट्र जैसे बड़े और राष्ट्रीय प्रभाव डालने वाले राज्य में चौंधियाने वाली जीत को क्या माना जाए.।
State election 2024 महाराष्ट्र की जीत का पुख्ता संकेत मिलने के तत्काल बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री व संभवत: भावी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया- ”एक हैं तो सेफ हैं, मोदी है तो मुमकिन है।” यानी 2019 के उस नारे की भी वापसी हो गई जिसने पूरे देश में लहर को पैदा किया था।
उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने जिस तरह सपा की जीती हुई सीटों पर कब्जा किया है वह बताता है कि लोकसभा के नतीजे से भाजपा बाहर आ चुकी है। बहरहाल, इसकी परीक्षा होनी बाकी है कि राजग की लहर कितनी बड़ी है क्योंकि बहुत जल्द ही दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं और फिर राजनीतिक रूप से अहम बिहार में। State election 2024
झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी
झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी ने फिर से यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य में आदिवासियों के वही एक मान्य नेता हैं। लगातार दूसरी बार भाजपा की हार के कई और भी कारण हो सकते हैं जिसके कारण घुसपैठिया, धर्म परिवर्तन जैसा मुद्दा भी नहीं चल पाया। लेकिन एक और मुद्दे पर भाजपा को विशेष तौर पर विचार करना पड़ेगा कि विधानसभा चुनावों में बाहर से आए नेताओं को पर्दे के पीछे रखना है कि आगे। महाराष्ट्र में भी भाजपा ने कई बड़े केंद्रीय नेताओं को जिम्मेदारी दी थी लेकिन वह सभी पर्दे के पीछे से रणनीति का जिम्मा संभालते रहे।झारखंड में स्थिति थोड़ी अलग थी जिसे झामुमो ने स्थानीय बनाम बाहरी की कसौटी पर भुनाया।
राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के लिए झारखंड राहत की सांस भर है
दूसरी बार वापसी हेमंत सोरेन के लिए बहुत बड़ी जीत है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि महाराष्र्ट्र की आंधी और उत्तर प्रदेश उपचुनाव के नैरेटिव में राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के लिए झारखंड राहत की सांस भर है। जबकि कांग्रेस के लिए फिर से एक संदेश कि फिलहाल कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के कंधों पर ही सवारी करनी है। यह सवाल लाजिमी है कि लोकसभा चुनाव के बाद तीन चार महीनों में क्या बदल गया.। State election 2024
खासतौर से महाराष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत प्रासंगिक है। पहली बात लोकसभा चुनाव इस नैरेटिव पर था कि संविधान बदल जाएगा, उस वक्त का चुनाव इस संवेदना पर था कि भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी तोड़ दी। तीन चार महीनों में राजनीतिक माहौल उस नैरेटिव से हटकर लाड़ली बहना योजना, मुंबई में टोल फ्री एंट्री, आवास जैसी योजनाओं पर आ गया।
रेवड़ी अब चुनावी राजनीति का स्थायी हिस्सा
पिछले साल हुए मध्य प्रदेश चुनाव के बाद से ही यह तो स्थापित हो ही गया है कि रेवड़ी अब चुनावी राजनीति का स्थायी हिस्सा है। यह आलोचना का नहीं गौरव का विषय है। तभी तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी अब रेवड़ी सभाएं करने लगी है।
महाराष्ट्र में महिलाओं के जोश का अंदाजा आंकड़ों से मिल जाता है। लोकसभा चुनाव में 59 फीसद महिलाओं ने वोट डाला था और 63फीसद पुरुषों ने। विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी लगभग साढ़े 65 फीसद थी। वोट कहां गया इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। State election 2024
बहरहाल, अब सवाल यह है कि इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर दिखेगा और कहां तक। लोकसभा चुनाव में जिन लोगों ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे से सहानुभूति जताई थी, विधानसभा में उन्हीं मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया कि असली शिवसेना और असली एनसीपी वह किसे मानते हैं।
भाजपा तो दूर अकेले शिंदे शिवसेना अघाड़ी के सभी दलों के संयुत्त नंबर से आगे थी तो भतीजा अजीत पवार अपने चाचा से चारगुना बेहतर दिखे। उद्धव और पवार के लिए प्रदेश की राजनीति फिलहाल दुरूह हो ही गई है। State election 2024
यही कारण है कि झारखंड की जीत के बावजूद कांग्रेस नेताओं में उत्साह नहीं दिखा। दरअसल, महाराष्ट्र में पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की वादाखिलाफी का भी मुद्दा भी उठा था। इसे अब दूर दूर तक पहुंचाने की कोशिश होगी। State election 2024
कांग्रेस के लिए खुद को विपक्ष के नेतृत्व करने वाले दल के रूप में स्थापित करना अब और मुश्किल हो गया है। जबकि भाजपा ने खुद एक सफल और नेतृत्व करने वाले सहयोगी के रूप में और मजबूती से स्थापित किया। एक ऐसे सहयोगी के रूप में
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