BNP NEWS DESK। Deep Jyoti Parv दीप ज्योति पर्व शृंखला का आरंभ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस से होगा, लेकिन इस बार उससे पांच दिन पहले ही श्री-समृद्धि का महायोग बन रहा है। कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि में 24 अक्टूबर-गुरुवार को पुष्य नक्षत्र मिल रहा। देवगुरु बृहस्पति के दिन पुष्य नक्षत्र की उपस्थिति से बन रहा गुरु पुष्य योग शुभ-लाभ का विशेष संयोग बनाएगा।
यह विशेषकर चतुर्दिक यात्रा के लिए प्रशस्त माना जाता है, लेकिन नक्षत्र विशेष के स्थायित्व प्रदाता होने से इसे स्थिर लक्ष्मी संग्रह समेत क्रय का अपुच्छ मुहूर्त माना जाता है। लक्ष्मी-नारायण पूजन समेत किया गया कार्य स्थायी और शुभ फलदायी हो जाता है।
ऊर्जा और शक्ति प्रदाता
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि में 24 अक्टूबर को सुबह 11.48 तक पुष्य नक्षत्र है। इसके बाद पुष्य नक्षत्र मिल रहा जो अगले दिन दोपहर 12.22 बजे तक रहेगा। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र का संयोग होने से इसका मान गुरु पुष्य नक्षत्र का है। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने वाला। नक्षत्रराज पुष्य के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं।बृहस्पति ज्ञान, अध्यात्म और त्याग के कारक हैं।
कार्य-व्यवसाय आरंभ, क्रय-निवेश फलदायी
तिथि विशेष पर बन रहा सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग यश-कीर्ति, एश्वर्य, सफलता और सुख-समृद्धि का कारक है। इस तरह के शुभद योगों के अनूठे संयोगों के बीच पुष्य नक्षत्र के वास से ज्ञान-ध्यान, पूजन-अनुष्ठान, कार्य-व्यवसाय आरंभ, जमीन-मकान, सोना-चांदी, वाहन समेत सुख-सुविधा के सामान की खरीद, निवेश और किया गया कार्य सिद्ध होता है। कारण यह कि इसमें देवगुरु बृहस्पति धातु को प्रशस्त करते हैं। विशेषकर उन्हें पीली धातु यानी स्वर्ण विशेष प्रिय है। गुरु शुभता के प्रतीक हैं ।
सुख-समृद्धि कामना से लक्ष्मी-नारायण का पूजन
गुरु पुष्य योग में लक्ष्मी-नारायण के पूजन-अर्चन का विशेष मान है। इससे शुभ-लाभ में वृद्धि होती है। यात्रा, कार्य प्रशस्त होते हैं। उनकी कृपा से जीवन में श्रीसमृद्धि आती है।
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Deep Jyoti Parv
दीप ज्योति पर्व शृंखला का आरंभ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस से होगा, लेकिन इस बार उससे पांच दिन पहले ही श्री-समृद्धि का महायोग बन रहा है।
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