बीएनपी न्यूज डेस्क। Chhatrapati Shivaji Maharaj राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी उत्तर भाग के द्वारा हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव पर उत्तर भाग की सभी नगरों की शाखाओं पर उत्सव मनाया गया।
छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक आज ही के दिन 348 वर्ष पूर्व जेष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन सन 1674 ईसवी को हुआ था
रविवार को शहर के विभिन्न शाखाओं पर छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र पर स्वयंसेवकों के द्वारा पुष्पार्चन एवं उनके जीवन ,शासन पद्धति ,युद्ध कौशल ,व्यापार की व्यवस्था, समुद्री सुरक्षा व व्यापार आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया
सिगरा क्षेत्र में केशव शाखा पर डॉ के के सिंह जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज व माता जीजाबाई के जीवन काल घटना का वर्णन किया गया इस दौरान तिलक नगर कार्यवाह अमित जी,मनोज जी मुख्य शिक्षक सुनील जी और शाखा के कार्यकर्ता मौजूद रहे।
चेतसिंह नगर में पूर्व महानगर कार्यवाह व वरिष्ठ स्वयंसेवक मुरली जी ने शिवाजी के मूर्ति पे पुष्पार्चन किया उन्होंने हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव का महत्व व 1674 ईसवी से 1818 ईसवी तक के काल खंड की शौर्य गाथा स्वयंसेवकों को बताया।
कैंटोनमेंट स्थित मां चण्डिका शाखा पर भाग शारीरिक प्रमुख श्रीमान जितेंद्र जी ने शिवाजी व अफजल खान के मध्य हुए युद्ध व अफजल खान की मौत के साथ शिवाजी की विजयश्री पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान राजा सुहेलदेव नगर के नगर कार्यवाह अभिषेक के साथ मां चण्डिका शाखा के स्वयंसेवक व स्थानीय सभ्रान्त नागरिक मौजूद थे
लमही स्तिथ प्रेमचन्द्र शाखा पर गोविंद ने शिवाजी के जीवन मे भगवान श्रीकृष्ण के आचरण व उनकी महाभारत काल की युद्ध नीति को किस प्रकार शिवाजी ने अपने आचरण में समाहित किया, व प्रभु श्रीराम के रामराज को प्रतिरूप बनाकर शिवा जी अपने शासन की व्यवस्था कैसे बनाई इस विषय पे ध्यान आकर्षित किया। इसके साथ ही शहर के अन्य क्षेत्रों में भी शाखाओं पे व विचार परिवारिक कार्यकर्ताओं के द्वारा अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए।
काशी के पं. गागाभट्ट ने दी शिवाजी के रूप में भारत को नई पहचान
मात्र 28 वर्ष की आयु में 40 दुर्गों पर भगवा ध्वज को फहराने वाले वीर शिवाजी 40 वर्ष के हो चुके थे। औरंगजेब के भय से महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के ब्राह्मण उनका राज्याभिषेक करने की हिम्मत न जुटा सके, तब काशी के परम विद्वान पं. विश्वेश्वर भट्ट उर्फ गागाभट्ट अपने सन्यास आश्रम को भंग कर रायगढ़ पहुंचे और ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी (तब छह जून 1674, इस वर्ष 12 जून) को वैदिक पद्धति से शिवाजी का राज्याभिषेक कराया और छत्रपति के रूप में भारत को एक नई पहचान दी। इस दिन को शिवाजी ने ‘हिंदवी साम्राज्य दिवस’ या ‘हिंदू पद पादशाही दिवस’ घोषित किया। महाराष्ट्र वासियों व तमाम हिंदू संगठनों द्वारा यह दिवस रविवार को पर्व के रूप में मनाया जाएगा।
आगरा से काशी पहुंचे थे शिवाजी
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहासविद डा. विनोद जासवाल बताते हैं कि औरंगजेब ने वीर शिवाजी को धोखे से आगरा में कैद कर दिया तो अपनी चतुराई से वह निकलने में सफल रहे। वहां से मथुरा, प्रयाग होते काशी आए और यहां अस्सी निवासी एक विपन्न ब्राह्मण के घर कुछ दिनों के लिए शरण लिए। यहां पंचगंगा घाट पर अपनी पहचान छिपाकर उन्होंने पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण व पिंडदान भी किया। इतिहासकार भाऊशास्त्री वझे ‘काशी इतिहास’ में लिखते हैं कि श्राद्ध कराने वाले किशोर पुरोहित की अंजुली शिवाजी ने रत्नों से भर दिया था। अपने हाथ में पहने स्वर्ण कंकड़ भी दे दिया। पंचक्रोशी परिक्रमा करते हुए भोजूबीर मार्ग पर कुलदेवी दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण कराया। वहां अनेक देवी-देवताओं के विग्रह स्थापित कराए। तभी उनका परिचय काशी के गागाभट्ट से हुआ।
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