बीएनपी न्यूज डेस्क। देश में धार्मिक सौहार्द के लिए मुस्लिम भाइयों को खुद जिम्मेदारी लेनी होगी। उन्हें ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्यों की समझ के साथ जीना सीखना चाहिए। अयोध्या मसला को इतने दिनों तक मार्क्सवादी इतिहासकारों ने उलझाए रखा था और जब उत्खनन में मंदिर के तथ्य मिलने लगे तो वे अपनी बात से पलट गए।
उच्चतम न्यायालय का इस संबंध में निर्णय संतुलित व ऐतिहासिक है। हमें ऐतिहासिक गलतियों से सबक सीखना होगा। यह कहना है ख्यात पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री केके मुहम्मद का। वह शनिवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मानवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में कला, इतिहास एवं पर्यटन प्रबंधन विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान चोकोलिंगो स्मृति व्याख्यान श्रृंखला में दूसरे दिन ऐतिहासिक तथ्यों पर बोल रहे थे।
अपने विशिष्ट व्याख्यान में मुहम्मद ने अयोध्या मंदिर संबंधी पुरातात्विक साक्ष्यों को प्रस्तुत करते हुए वहां पहले से ही मंदिर होने के साक्ष्य प्रस्तुत किए। ज्ञात हो कि केके मुहम्मद ने प्रख्यात पुराविद बीबी लाल के नेतृत्व में 1976-77 में अयोध्या उत्खनन में भाग लिया था। तत्पश्चात बीआर मणि ने उत्खनन का नेतृत्व किया। उत्खनन में बाबरी मस्जिद की नींव से पूर्व बारहवीं सदी के प्राप्त कई ईष्टिका स्तंभ आधार की भी उन्होंने चर्चा की। पुरास्थल से प्राप्त नब्बे से भी ज्यादा स्तंभ आधार, मंदिर के विविध स्थापत्यकीय अवशेष के साथ आमलक, गर्भगृह में प्रतिष्ठापित प्रतिमा से जल निकलने हेतु प्रणाल व बीस पंक्तियों का लेख मंदिर को इस संदर्भ में अहम बताया। स्पष्ट कहा कि प्राप्त सैकड़ों मृण्मूर्तियां व मूर्ति अवशेष देवालय होने की पुष्टि करते हैं।
नए मंदिर के निर्माण के समय भी कई मंदिर स्तंभ प्राप्त हुए। केके मुहम्मद ने पुरातात्विक स्रोतों के साथ ही विविध पारसी व साहित्यिक स्रोतों विशेषकर आइन-ए-अकबरी का उल्लेख किया जिसमें हिंदू धार्मिक स्थल के रूप में अयोध्या की चर्चा है। कहा कि मार्क्सवादी इतिहासकारों ने पूरे अयोध्या मसले को इतने दिनों तक उलझाए रखा। उनके पूर्वाग्रह व पुरातत्व की नासमझ विवाद के कारण ही समाधान में विलंब व व्यवधान आया तथा देश के सौहार्द में कमी आई।
केके मुहम्मद ने देवालयों के ध्वंसावशेषों से निर्मित विभिन्न मध्यकालीन स्मारकों के भी साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए इतिहास की गलतियों से सीख लेने की बात कही। इनके पूर्व के सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रवींद्र कुमार ने विरासत पर्यटन के सिद्धांतों की विस्तृत चर्चा की। कहा कि बीएचयू के के कला-इतिहास विभाग का कला-विरासत संरक्षण, प्रवर्धन एवं संप्रेषण में विशेष योगदान रहा है। संस्थापक विभागाध्यक्ष प्रो. वासुदेव शरण अग्रवाल केदर्शाए मार्गों का अनुपालन करते हुए विभाग ने मूर्त व अमूर्त विरासत के प्रवर्धन में एक अमिट छाप छोड़ी है। इस विभाग के अमूल्य योगदान के कारण ही प्रवासी भारतीय फ्रैंक सी चोकोलिंगो इसे अनुदान देने को प्रेरित हुए।सत्र की अध्यक्षता प्रो. विभा त्रिपाठी ने की। विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल त्रिपाठी ने स्वागत उद्बोधन दिया। संचालन डा. ज्योति रोहिल्ला राणा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. शायजु ने किया।
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