BNP NEWS DESK। Naga Sadhus नागा साधुओं के प्रत्यक्ष साक्षात्कार की अभिलाषा में चार बजे ही तट पर आ डटे थे। साथ में कर्नाटक के उडुपी से आए केदार कृष्णन, गणेशन वेंकट रामन शरीर पर शाल ओढ़े जयकारे लगा रहे हैं।
Naga Sadhus प्रत्यक्ष हैं गंगा-यमुना की लहरें, परंतु अदृश्य सरस्वती का साक्षात्कार आज हुआ है…। यह असंख्य जन समुदाय के हृदय में हिलोर मारता अध्यात्म है। अखाड़ों के हजारों नागाओं का मां-मां कहता स्वर है…। त्रिवेणी की तीसरी धारा अमृत काल की बेला में जागृत हुई। यह तीर्थराज का तट है। अगर यह राजपथ है तो भी अभिनंदन है, अगर यह देव पथ है तो भी वंदन है, हे देव तुल्य तपस्वी दंडवत तुम्हारे चरणों में…।
नागाओं का दल-बल संगम तट की ओर अग्रसर
श्रद्धाभाव से भरे लाखों लोगों की कतारबद्ध पंक्ति, जयघोष संग कभी हाथ नभ की ओर, कभी सीने पर। अखाड़ों का तेज, नागाओं का दल-बल संगम तट की ओर अग्रसर है। ये क्या कोई प्राचीन साम्राज्य है या स्वर्ग का प्रवेश द्वार है? व्योम से विमान की पुष्पवर्षा….ओह ! यह अद्भुत, अद्वितीय, अप्रतिम है…।
ये लाखों लोगों की भीड़ यूं कतारबद्ध होकर हाथ जोड़े मानो महाशिव के दर्शन कर रही है। भाव से नेत्र छलक रहे हैं, शरीर का अंग-अंग कंपित है, रोंगटे खड़े हैं। बाबा…बाबा..आशीर्वाद दे दीजिए…..ब्रह्ममुहूर्त की बेला से प्रतीक्षारत तेज करुण पुकार पर जाने क्यों कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। अत्यंत तेजोमय वातावरण के बीच यह अति उत्साही जबलपुर निवासी धनंजय शुक्ल हैं।
जय हो, जय हो, मैं धन्य हो गया…अचानक से यह स्वर धनंजय का गूंजा। एक भस्माधारी नागा साधु ने त्रिशूल के साथ अपना हाथ उठाकर धनंजय को देखा। जटाओं को अर्द्धचंद्रकार दिशा में घुमाकर आगे बढ़ गए। आशीष मिला, पुकार को आकार मिला।
“कर्म कर, प्रतिफल की इच्छा न कर’ चरितार्थ
प्रतीक्षा पूर्ण हुई। प्रतिफल मिल गया। गीता का वह सार कि “कर्म कर, प्रतिफल की इच्छा न कर’ चरितार्थ हो गया। नेत्र के भाव चेहरे पर और हाथ जोड़े प्रेम वात्सल्य मिल गया। भस्म विभूषित नागा साधुओं की सेना और राजर्षि ठाठ-बाट के साथ गुजरते दल का क्रम जारी था।
न पलक झपकती है, न मन भरता है। कई किलोमीटर तक मूड़ै-मूड़ और उनकी आस्था है। नागा संन्यासियों के गुजरते ही उनके चरणों की रज मस्तक पर लगाते भावाकुल भक्तों के लिए यही तो परम सुख है।
प्रतापगढ़ के दिनेश तिवारी और उनका पूरा परिवार भी पंक्तिबद्ध था। हाथ में बोतल थी और चरण रज रूपी रेत के कणों को भरने लगे। महिलाओं ने अपने आंचल में रेत रज रख गांठ मार दी।
सुदूर कंदराओं, पहाड़ों और दुर्गम स्थानों से निकलकर अपने अखाड़ों के महामंडलेश्वर, अपने देवताओं की रक्षा करते तीर्थराज की रेती पर जहां कहीं भी चरणों के चिह्न बने, मानो वही स्थल भक्त वत्सल का है।
एक झलक संतों की मिल जाए, बस यही अभिलाषा तट के हर जीव की थी। मनुष्य ही क्या, देव, दनुज, जलचर, नभचर सब आतुर थे इस क्षण को आत्मसात करने को। इटली की जार्जिया, क्रिस्टीना अपने गाइड अभिनव के साथ फोटो खींचने के अलावा वीडियो बना रही थीं।
पूछने पर पता चला कि मकर संक्रांति कवर करने के लिए महाकुंभ में आए हैं। अकेले अमृत स्नान पर ही उन्होंने वह सब कुछ प्राप्त कर लिया है, जो उन्हें जीवनभर याद रहेगा। सनातनी वैभव के हर क्षण को क्या देशी और क्या विदेशी, हर कोई अपने चक्षुओं में सदा सर्वदा के लिए प्रतिबिंब सुरक्षित कर रहा है, भोर का क्रम निशा काल तक जारी रहा। यह अमृत स्नान है, दर्शन से भी अमरत्व मिलता है।
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