बीएनपी न्यूज डेस्क। Gyanvapi-Shringar Gauri Case ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें जारी रखीं। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन ने हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल वाद के बिंदूओं को स्पष्ट किया। इनके समर्थन में हिंदू ला से लेकर सिविल ला तक की चर्चा की। सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों को अदालत के सामने रखा। महत्वपूर्ण फैसलों की नजीर देते हुए कहा कि काशी विश्वनाथ नया परिसर या पुराना मंदिर हर जगह पूजा का अधिकार है। अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 14 जुलाई तक की है। इस दिन भी मंदिर पक्ष अपनी बातें रखेगा।
पांच महिलाओं की ओर से दाखिल याचिका की ग्राह्यता (सुनवाई योग्य है या नहीं) पर जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में चल रही सुनवाई में हिंदू पक्ष की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने अपनी दलीलों की शुरुआत प्रार्थना पत्र में की गई मांग पर ही। उन्होंने अदालत को स्पष्ट किया कि मुकदमे को गुमराह करने की कोशिश की जा रही। वाद में नियमित दर्शन-पूजन की मांग की गई है। ना कि विवादित परिसर पर कब्जे या किसी को निकालने की बात की गई है।
उन्होंने कहा कि आराजी संख्या 9130 (विवादित भूखंड) को काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में बाबा विश्वनाथ को निहित की गई है। यूपी विधानमंडल काशी विश्वनाथ एक्ट 1993 में हिंदू के अधिकार को स्वीकार करता है। इसके मुताबिक विश्वनाथ का नया परिसर या पुराना सभी मंदिर के भाग पर लागू होता। यहां मौजूद देवी-देवाताओं की पूजा का अधिकार है। यह एक्ट पूरे परिसर पर लागू होता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 1997 के केस में स्वयंभू की परिभाषा का उल्लेख किया। सुप्रीम कोर्ट के बीके मुखर्जी, रामजानकी केस 1999 में भगवान के अधिकार और प्रकार पर बात की। हिंदू ला में भगवान के स्वरूप और देवता किसे कहते हैं इसकी विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही 1995 सुप्रीम कोर्ट की उमंग सिंह के केस को नजीर के तौर पर पेश करते हुए जनहित के मामले सिविल अदालत में सुनने की बात पर जोर दिया।
हिंदू पक्ष ने वाद के पक्ष में जार रखी अपनी दलील
ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें जारी रखीं। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन ने मंदिर पक्ष की ओर से दाखिल वाद के बिंदूओं को स्पष्ट किया। इनके समर्थन में हिंदू ला से लेकर सिविल ला तक की चर्चा की। सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों को अदालत के सामने रखा। महत्वपूर्ण फैसलों की नजीर देते हुए कहा कि काशी विश्वनाथ नया परिसर या पुराना मंदिर हर जगह पूजा का अधिकार है। अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 14 जुलाई तक की है। इस दिन भी हिंदू पक्ष अपनी बातें रखेगा।
पांच महिलाओं की ओर से दाखिल याचिका की ग्राह्यता (सुनवाई योग्य है या नहीं) पर जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में चल रही सुनवाई में मंदिर पक्ष की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने अपनी दलीलों की शुरुआत प्रार्थना पत्र में की गई मांग पर ही। उन्होंने अदालत को स्पष्ट किया कि मुकदमे को गुमराह करने की कोशिश की जा रही। वाद में नियमित दर्शन-पूजन की मांग की गई है। ना कि विवादित परिसर पर कब्जे या किसी को निकालने की बात की गई है।
उन्होंने कहा कि आराजी संख्या 9130 (विवादित भूखंड) को काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में बाबा विश्वनाथ को निहित की गई है। यूपी विधानमंडल काशी विश्वनाथ एक्ट 1993 में हिंदू के अधिकार को स्वीकार करता है। इसके मुताबिक विश्वनाथ का नया परिसर या पुराना सभी मंदिर के भाग पर लागू होता। यहां मौजूद देवी-देवाताओं की पूजा का अधिकार है। यह एक्ट पूरे परिसर पर लागू होता है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 1997 के केस में स्वयंभू की परिभाषा का उल्लेख किया। सुप्रीम कोर्ट के बीके मुखर्जी, रामजानकी केस 1999 में भगवान के अधिकार और प्रकार पर बात की। हिंदू ला में भगवान के स्वरूप और देवता किसे कहते हैं इसकी विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही 1995 सुप्रीम कोर्ट की उमंग सिंह के केस को नजीर के तौर पर पेश करते हुए जनहित के मामले सिविल अदालत में सुनने की बात पर जोर दिया
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