BNP NEWS DESK। Janata Raja संत ज्ञानेश्वर ने अपने ईष्ट पांडुरंग से वह मांग लिया जो वाल्मीकि व व्यास को भी नहीं सूझा। उन्होंने मांगा, ‘जिसे जो चाहिए, वह मिल जाए’ फिर तो माता जीजाशा ने मांगा-हिंदवी स्वराज्य, परतंत्रता की बेड़ियों का नाश और स्वतंत्रता…. ‘लाइ द पांडुरंग माई, तेरे दर पर मैं आई, कृष्ण कन्हाई…’। उन्हें मिला भी। मां तुलजा भवानी के आशीष से मां जीजाऊ की कोख में स्वराज का मोगरा खिला, वीर शिवा ने जन्म लिया और उसके शौर्य-सुगंध से संपूर्ण भारत-भूमि गमक उठी।
Janata Raja बीएचयू के एंफिथिएटर मैदान में मराठी महानाट्य ‘जाणता राजा’ के हिंदी संस्करण का 1140वां मंचन जब बुधवार को हुआ तो दर्शकों से खचाखच भरा पूरा मैदान ‘हर-हर महादेव’ व ‘जय-भवानी’ के उद्घोष से गूंज उठा। पग-पग पर अद्भुत गीत-मराठी संस्कृति को दर्शाते नृत्य, मां तुलजा भवानी की रोमांच भरती तांत्रिक आराधना, वीर शिवाजी के शौर्य बखानते कथानक, प्रभावपूर्ण संवाद, भावानुकूल अभिनय और भव्य किलेनुमा रिवाल्विंग चार मंजिला मंच, ध्वनि-प्रकाश के अद्भुत समन्वय ने दर्शकों को बांधे रखा।
भव्य विशाल मंच पर सजीव हाथी-घोड़ों, ऊंटों, पालकियों, खनखनाती तलवारों, भालों से लैस योद्धाओं के हैरतअंगेज करतब, युद्ध के दृश्यों से यूं लगा जैसे सभी तीन घंटे के लिए 17वीं सदी के महाराष्ट्र में पहुंच गए हों। Janata Raja
मध्यकाल में खिलजी के आक्रमण ने सब तहस-नहस कर दिया
हंसती-खेलती मराठा भूमि, जो हरियाली से लहलहाती थी, खुशियों से खिलखिलाती थी, जहां बलशाली वीर युवा, नीतिवान, विद्वान, बुद्धिमान जन थे, नैतिककता इतनी कि जहां घरों में ताले नहीं लगते थे, में मध्यकाल में खिलजी के आक्रमण ने सब तहस-नहस कर दिया। मराठों की हार ने उनकी दुर्दशा के दिन ला दिए। ऐसे में वर्षानुवर्ष लगभग 250 वर्ष बीत गए। अधर्म, अन्याय, दमन, शोषण से कराहती मराठा भूमि का भाग्य भवानी जीजाऊ के रूप में प्रकट हुआ। Janata Raja
वे शाहजी भाेंसले की गृहलक्ष्मी बनीं। स्वातंत्र्य की इस पुजारिन ने हिंदवी स्वराज्य के स्वप्न देखे और इसे साकार करने को अपने पुत्र वीर शिवाजी को दिए बचपन से वीरता, धार्मिकता, नैतिकता के संस्कार। मावले युवाओं को एकत्र कर वीर शिवाजी ने गोंधन (माता का जगराता) किया, इसमें युद्धकला का प्रदर्शन देख सभी रोमांचित हो उठे। मां जीजाशा के मांगने पर अगली सुबह तोरणगढ़ का किला जीतकर उनके चरणों में रख दिया।
यह भगवा ध्वज सती के संकल्प समान है… सुन फड़क उठे रोम-रोम
माता जीजाशा ने बाल शिवराज को भगवा ध्वज प्रदान करते हुए कहा कि ‘ये ध्वज हाथ में लेना, सती के व्रत समान है। राजे, जिस दिन धरती पर पहली बार सूरज की किरणें पहुंची, उसी दिन इस ध्वज ने जन्म लिया लेकिन यह आज अंधेरे में है, तुम्हें स्वराज का सूरज उगाना है।’ उनका यह संवाद सुन दर्शकों के रोम-रोम फड़क उठे। दूसरे दिन वाराणसी के अतिरिक्त मीरजापुर व भदोही के लोगों ने महानाट्य देखा।
सुंदर संगीत व नृत्य से सजे पारंपरिक गीत बढ़ा रहे कथानक आगे
मां तुलजा भवानी की आरती के बाद महानाट्य में सात पारंपरिक गीत सुंदर संगीत से सजे-बने हैं। गोंधन (माता का जगराता), कोली, कव्वाली, भरुण, कीर्तन, भजन, वाघ्या मुरली प्रसंगों के अनुकूल कथानक को आगे बढ़ाने व दृश्यों को उकेरने में सहायक बने तो अंत में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक अवसर पर राग भैरवी में गान और नृत्य ने पूरे दृश्य में श्रीराम दरबार सी चमक और वैभव उत्पन्न कर दिया।
तीन अवस्था के रूपों में शिवाजी के दर्शन
महानाट्य में छत्रपति शिवाजी के दर्शन तीन रूपों में होते हैं। तीन कलाकारों ने क्रमश: बाल शिवाजी, राजे यानी तरुण शिवाजी और छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका निभाई। तेजस्विनी नागरे (माता जीजाशा), अभिजीत पाटने (छत्रपति शिवाजी महाराज), डा. अजीत राव आप्टे (औरंगजेब), शिवांगी शेडगे (शिवाजी की पहली पत्नी शई बाई साहेब), सुनील बहरे (अफजल खां), योगेश भंडारे (राजे – तरुण शिवाजी), गौरव शिरोड़े (आदिल शाह), महेश अंबेकर (शाहीर) ने महानाट्य के निर्देशक योगेश सिरोले के निर्देशन में अपने अभिनय से महानाट्य में प्राण फूंक दिए।
वीर शिवा जैसे दूरदर्शी नेतृत्व व नीतियों के समर्थन का संकल्प
मध्यांतर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक ने मैदान में उपस्थित दस हजार से अधिक दर्शकों को छत्रपति शिवाजी जैसे वीर, दूरदर्शी नेतृत्व व नीतियों के समर्थन का संकल्प दिलाया।
दर्शकों ने भुज उठा प्रण लिया भी, ‘मैं…. ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ लेता हूं कि अपने देश को विश्व गुरु बनाने के लिए भविष्य में प्रत्येक अवसर पर छत्रपति शिवाजी जैसा राष्ट्रभक्त, योग्य, साहसी और पराक्रमी, जाति-धर्म का मोह न करने वाला, जनहित व देशहित को सर्वाेपरि रखने वाला, दूरदर्शी नेतृत्व ही स्वीकार करूंगा। ऐसी ही नीतियों का समर्थन करूंगा। किसी भी अवसर पर अपने हित के पहले देशहित को महत्व दूंगा।…भारत माता की जय!’
वीर शिवाजी व पं. गागाभट्ट की प्रतिमा लगे काशी में : ब्रजेश पाठक
महानाट्य ‘जाणता राजा’ के काशी में दूसरे दिन हुए 1139वें मंचन में मुख्य अतिथि उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने महापौर अशोक तिवारी व जिलाधिकारी से आग्रह किया कि आने वाली पीढ़ियों को काशी व छत्रपति शिवाजी महाराज के संबंधों की जानकारी व गौरवशाली अतीत से प्रेरणा देने के लिए वे काशी में महापंडित वेदमूर्ति गागाभट्ट व छत्रपति शिवाजी महाराज के संबंधों को दर्शाती विशाल प्रतिमा किसी उपयुक्त स्थल पर लगवाएं।
उन्होंने युवा दर्शकों का आह्वान किया कि ऐसा संकल्प लेकर जाएं की वीर शिवाजी का भगवा झंडा कभी झुकने न पाएगा। कहा, मुगलों ने हमारी संस्कृति पर हमला कर मिटाने के कई प्रयास किए। इतिहास गवाह है कि हमारी संस्कृति को किस तरह थोड़ा मरोड़ा गया है।
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संत ज्ञानेश्वर ने अपने ईष्ट पांडुरंग से वह मांग लिया जो वाल्मीकि व व्यास को भी नहीं सूझा। उन्होंने मांगा, ‘जिसे जो चाहिए, वह मिल जाए’
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