BNP NEWS DESK। Mysteries of Dwarka भगवान श्रीकृष्ण की कर्मभूमि द्वारका के रहस्यों को खंगालने के लिए पुरातत्वविदों ने ‘रहस्य के समुद्र’ को खंगालना शुरू कर दिया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की शाखा अंडरवाटर आर्कियोलाजिकल विंग (यूएडब्ल्यू) के पांच पुरातत्वविदों टीम ने दो दशकों बाद गुजरात तट पर समुद्र में रहस्यों की खोज शुरू की। चार हजार साल पुराने शहर के रहस्यों को जानने के उद्देश्य से टीम के सदस्यों ने गुजरात तट के पास समुद्र में गोता लगाया। पौराणिक कथाओं के अनुसार जलमग्न प्राचीन शहर द्वारका को कृष्ण की कर्मभूमि माना जाता है। यह जिज्ञासा और रहस्य का केंद्र रहा है। इससे पहले द्वारका के रहस्यों का पता लगाने का अभियान 2005 और 2007 के बीच चलाया गया था।
Mysteries of Dwarka संस्कृति मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि अतिरिक्त महानिदेशक (पुरातत्व) प्रोफेसर आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में एएसआइ के पांच पुरातत्वविदों की टीम ने द्वारका के तट पर समुद्र में खोज शुरू की। टीम में अपराजिता शर्मा, पूनम विंद और राजकुमारी बारबीना जैसी महिला पुरातत्वविद् शामिल हैं। अन्वेषण के लिए गोमती क्रीक के पास के क्षेत्र का चयन किया गया है।
यूएवी ने कई पुरातात्विक स्थलों की खोज और शोध किया
समुद्री पुरातात्विक अनुसंधान में यूएडब्ल्यू की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यूएवी ने कई पुरातात्विक स्थलों की खोज और शोध किया है, जिनमें लक्षद्वीप का बांगरम द्वीप, तमिलनाडु का महाबलीपुरम, गुजरात का द्वारका, मणिपुर की लोकटक झील और महाराष्ट्र में एलिफेंटा द्वीप शामिल हैं।
माना जाता है कि द्वारका सप्त पुरियों में से एक है। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण कृष्ण के धरती से जाते ही यह शहर अरब सागर में डूब गया, जिससे कलयुग की शुरुआत हुई।
द्वारका के जलमग्न रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पिछली सदी के तीसरे- चौथे दशक में हीरानंद शास्त्री के साथ शुरू हुई, इसके बाद 1963 में जेएम नानावटी और एचडी सांकलिया के नेतृत्व में अन्वेषण हुआ, लेकिन रहस्य का अब तक पता नहीं चल सका है।
हालांकि पुरातत्वविदों के अन्वेषण में ढेर सारी प्राचीन कलाकृतियां और प्राचीन द्वारका के जलमग्न अवशेष सामने आए। यूनेस्को के अनुसार 1983 और 1990 के बीच, पुरातत्वविदों ने कई ऐसे रहस्यों का पता लगाया, जिनमें मजबूत नींव, पत्थर के ब्लाक, खंभे शामिल थीं, जिन पर द्वारका की प्राचीन शहर की दीवारें खड़ी थीं।
‘द्वारका’, जिसका संस्कृत में अनुवाद ‘द्वार’ होता है, भारत का प्रवेश द्वार है। यह भारत और पश्चिम एशिया के बीच व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र है। पुरातत्वविद् एएस गौड़ द्वारा राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) के अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों के समुद्री पुरातात्विक अन्वेषण के दौरान बेट द्वारका द्वीप के तटीय क्षेत्र में कई प्राचीन आवासीय स्थलों की खोज की गई थी। इन स्थलों से बड़ी मात्रा में प्रोटोहिस्टोरिक और ऐतिहासिक मिट्टी के बर्तन भी एकत्र किए गए हैं।
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