BNP NEWS DESK | Devshila Yatra नेपाल की काली गंडकी से प्राप्त देवशिला के कण-कण की जिस प्रकार भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम के रूप में पूजा होती है, उसी प्रकार अयोध्या जा रही दोनों देवशिलाओं के कण-कण का प्रयोग वहां आकार ले रहे भव्य श्रीराम मंदिर में भी होगा।
इन देवशिलाओं से न केवल गर्भगृह एवं श्रीराम दरबार की प्रतिमाएं बनेंगी, बल्कि कोटे-परकोटे के लिए बन रही भगवान राम की प्रतिमाओं और साथ बन रहे पंच मंदिर एवं अन्य समीपवर्ती मंदिरों में इनका प्रयोग होगा। कटाई, छंटाई और उत्कीर्णन के दौरान निकले छोटे-छोटे कण भी आवश्यकता अनुसार प्रयुक्त किए जाएंगे।
उन्नत मशीनों से बनेंगी प्रतिमाएं
Devshila Yatra सनातन परंपरा में शालिग्राम के विष्णु स्वरूप में पूजने का भाव देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने तय किया है कि देवशिला का एक भी कण व्यर्थ न हो। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के न्यासी एवं विश्व हिंदू परिषद के दक्षिण बिहार प्रांत के अध्यक्ष कामेश्वर चौपाल ने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि 26 जनवरी को नेपाल से चलीं 26 एवं 14 टन वजनी दो देवशिलाएं मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, गोरखपुर, संतकबीर नगर और बस्ती होते हुए दो फरवरी तक अयोध्या पहुंचेंगी। वहां इन देवशिलाओं को स्वरूप देने में कम से कम छह माह लगेगा।
एक कण भी नहीं होगा व्यर्थ, चूरा भी होगा प्रयुक्त
श्रीराम मंदिर के गर्भ गृह में रामलला के साथ प्रतिष्ठित होने वाले भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न के बाल स्वरूप और प्रथम तल पर श्रीराम दरबार में प्रतिष्ठित होने वाली चारों भाइयों की प्रतिमा इन्हीं देवशिलाओं से बनेगी। स्वरूप उत्कीर्णन के बाद देवशिलाओं का लगभग 40 प्रतिशत भाग टुकड़ों के रूप में बचेगा, जिसका प्रयोग दो मंजिला मंदिर के परकोटे के आसपास बन रहे पंच मंदिरों में पवित्रता के लिए किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त परिसर में बनने वाले अन्य मंदिरों में भी देवशिलाओं के टुकड़ों का प्रयोग होगा। इनमें भगवान राम के वनवास काल में सहयोगी रहे निषादराज गुह्य, श्रद्धा के वशीभूत होकर केवल मीठे फल खिलाने की लालसा रखते हुए भगवान राम को जूठे बेर खिलाने वाली शबरी, माता सीता का हरण रोकने के लिए रावण से युद्ध करने वाले जटायू, श्रीराम के कुलगुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ, शस्त्र शिक्षा देने वाले महर्षि विश्वामित्र और त्याग काल में माता सीता को आश्रय देने वाले महर्षि वाल्मीकि का भी मंदिर है। इन मंदिरों में भी देवशिलाओं का प्रयोग पवित्रता के लिए होगा।
माता सीता एवं हनुमानजी की प्रतिमा के लिए लिया जाएगा परामर्श
माता सीता एवं हनुमानजी की प्रतिमा देवशिला से बनाया जाना शास्त्र सम्मत है या नहीं, इस बारे में संतों एवं आचार्यों से परामर्श लिया जाएगा। इस शंका का कारण है कि क्या शालिग्राम के रूप मे पूजी जाने वाली देवशिला से माता सीता की प्रतिमा बन सकती है?
यह कारण भी दिया जा रहा है कि देवशिला श्याम वर्ण की है और माता सीता गौर वर्ण की थीं। वहीं, हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति सेवक भाव से की है। शालिग्राम विष्णु स्वरूप हैं और क्या उनकी पूजा उनके सेवक के स्वरूप में हो सकती है। ऐसे में न्यास परामर्श के लिए विद्वतजनों की राय लेगा।
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नेपाल की काली गंडकी से प्राप्त देवशिला के कण-कण की जिस प्रकार भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम के रूप में पूजा होती है
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