BNP NEWS DESK। Varanasi gyanwapi case वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर भगवान आदिविश्वेश्वर को सौंपने समेत अन्य मांगों को लेकर भगवान आदिविश्वेश्वर की ओर से विश्व वैदिक सनातन संघ की अंतरराष्ट्रीय महामंत्री किरन सिंह समेत अन्य द्वारा दाखिल मुकदमा की पोषणीयता तय होने के बाद मुस्लिम पक्ष रिविजन दाखिल करने की तैयारी कर रहा है।
हिंदू पक्ष ने शुक्रवार को जिला जज की अदालत में कैविएट दाखिल किया
Varanasi gyanwapi case उसके वकील अखलाक अहमद के अनुसार आर्डर शीट पढ़ने के बाद इसके लिए प्रार्थना पत्र तैयार किया जाएगा। तीन से चार दिनों में रिविजन दाखिल कर दिया जाएगा। वहीं हिंदू पक्ष ने शुक्रवार को जिला जज की अदालत में कैविएट दाखिल किया है। इस बारे में उनके वकील अनुपम द्विवेदी के अनुसार इस मामले में वादी के पक्ष में आए आदेश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कैविएट फाइल किया गया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट में भी कैविएट फाइल करने की तैयारी है। इस मामले में मस्जिद पक्ष की ओर से पोषणीयता (मुकदमा सुनने योग्य है या नहीं) को लेकर दाखिल प्रार्थना पत्र खारिज होने के बाद उनकी ओर से जिला जज की अदालत में रिविजन दाखिल करने की तैयारी है।
ये है कैविएट
Varanasi gyanwapi case जब किसी व्यक्ति को यह आशंका होती है कि कोई उसके खिलाफ अदालत में मामला दायर किया जा रहा है किया जाने वाला है तो वह एहतियातन प्रार्थना पत्र अदालत में दाखिल करता है। ताकि उसे उसे मामले की जानकारी दी जाए। अदालत किसी फैसले से पहले उसका पक्ष भी सुने।
अदालत ने कहा रेस जुडिकेटा के सिद्धांत से बाधित नहीं है मुकदमा
पोषणीयता को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र को खारिज करने के अदालत के आदेश में दीन मोहम्मद केस की चर्चा हुई। इसके साथ ही रेस जुडिकेटा की चर्चा भी हुई। वरिष्ठ वकील नित्यानंद राय के अनुसार अदालत ने स्पष्ट कहा कि मुकदमा नंबर 62 सन 1936 दीन मोहम्मद व अन्य बनाम सेक्रेट्री आफ स्टेट के मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन द्वारा 24 अगस्त 1937 को जो फैसला और डिग्री पारित किया गया था वह इस मुकदमे की सुनवाई करने से नहीं रोकता । विपक्षी संख्या चार अंजुमन इंतजामिया मसाजिद (मस्जिद पक्ष) का यह तर्क था कि चूंकि 1936 के फैसले में माननीय सिविल जज सीनियर डिविजन ने यह फैसला किया था की मस्जिद मुसलमानों के कब्जे में है और इसलिए मुसलमानों को नमाज पढ़ने का अधिकार है। मुस्लिम पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गई और 24 अगस्त 1937 के सिविल जज के फैसले को माननीय उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा ।
जबकि हिंदू पक्ष के अधिवक्ता का तर्क था कि दीन मोहम्मद के केस में वादी पक्षकार नहीं था और इस कारण से यह फैसला वादी पर बाध्यकारी नहीं है।
ये है रेस जुडिकेटा
रेस जुडिकेटा के सिद्धांत को साबित करने के लिए पहली बात यह जरूरी है कि मुकदमे में दोनों पक्षकार एक ही होने चाहिए । दूसरी बात यह जरूरी है कि मुकदमे में जो विवादित वस्तु है वह भी एक ही होनी चाहिए। तीसरी बात यह जरूरी है कि फैसला उन्हीं दो पक्षकारों के बीच में उसी संपत्ति के बारे में निर्णित हुआ होना चाहिए ।चौथी बात यह जरूरी है कि मुकदमा सक्षम अधिकारिता रखने वाले अदालत द्वारा पारित हुआ होना चाहिए। दूसरे शब्दों में यदि किसी संपत्ति के लिए दो पक्षकारों में कोई मुकदमा चला और उस पर फैसला हो गया तो उसी संपत्ति के लिए वे पक्षकार या पक्षकार के वारिसान नया मुकदमा नहीं कर सकते यानि वह फैसला दोनों पक्षों के ऊपर हमेशा के लिए बाध्यकारी है।
अपने 23 पेज के आदेश में 23 वे पेज पर अदालत ने स्पष्ट कहा कि दोनों पक्षों के बहस को सुनने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि वादी मुकदमा संख्या 62 सन 36 दीन मोहम्मद व अन्य बनाम सेक्रेट्री आफ स्टेट में पक्षकार यानि पार्टी नहीं था यही नहीं हिंदू पक्ष के पक्षकार बनने के प्रार्थना पत्र को तब की अदालत ने खारिज कर दिया था इसलिए दीन मोहम्मद के केस में पारित फैसला और डिग्री ना तो वादी पर और ना तो हिंदू समुदाय पर ही लागू होता है और पूजा करने का अधिकार इस डिग्री के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि रेस जुडिकेटा और दीन मोहम्मद के फैसले को श्रृगांर गौरी के मुकदमे में आधार नहीं बनाया गया था।
The Review
Varanasi gyanwapi case
Varanasi gyanwapi case वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर भगवान आदिविश्वेश्वर को सौंपने समेत अन्य मांगों को लेकर भगवान आदिविश्वेश्वर की ओर से विश्व वैदिक सनातन संघ की अंतरराष्ट्रीय महामंत्री किरन सिंह समेत अन्य द्वारा दाखिल मुकदमा की पोषणीयता तय होने के बाद मुस्लिम पक्ष रिविजन दाखिल करने की तैयारी कर रहा है।
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