वाराणसी, बीएनपी न्यूज। काल भैरव मंदिर की अपनी विशिष्ट महत्ता है, जिसे देश के ख्याति प्राप्त भैरव तीर्थों में प्रथम स्थान पर परिगणित किया जाता है। काशी तीर्थ के भैरव नाथ मुहल्ले में विराजमान काल भैरव को काशी तीर्थ का क्षेत्रपाल कहा जाता है और काशी के कोतवाल के नाम से इनकी प्रसिद्धि संपूर्ण जंबूद्वीप में है। यहां स्थल मार्ग (काशी विश्वनाथ से आगे) व जलमार्ग (गंगा के रास्ते नाव से होकर) दोनों से आना सहज है। इस बारे में काल भैरव मंदिर के सुनील दुबे और चंदन दुबे ने कहा कि भारतीय वांगमय में विवरण मिलता है कि ब्रह्मा और कृतु के विवाद के समय ज्योतिर्निगात्मक शिव का जगत् प्रादुर्भाव हुआ। जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिवजी का अपमान किया तब उनको दंड देने के लिए उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने भैरव जी को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मा जी को दंड देने का आदेश दिया। सदाशिव ने भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा। अजब है काशी। यहां की हर बात निराली है। दुनिया का अकेला ऐसा शहर जहां अष्ट भैरव, अष्ट विनायक, नौ गौरी और नौ दुर्गा के अलग अलग मंदिर हैं। इन मंदिरों में देवी और देवता के विग्रह का स्वरूप भी बिल्कुल अलग। यहां तक तो बात समझ में आती है लेकिन अगर इन देवी देवताओं के अलग अलग निमित्त से दर्शन पूजन का विधान तय हो तो बात अलौकिक सी हो जाती है।
बनारस, काशी, वाराणसी सब एक ही हैं, लेकिन जब बात इस शहर की हो, तो मानो सबकुछ बहुत पीछे छूट जाता है। हम खुद को इतने बौने और अज्ञानी नजर आते हैं, जैसे आकाशगंगा में चींटी या उससे भी छोटे। खैर, विषयांतर होने से पहले लौटते हैं काशी पर, जिसके रक्षण की जिम्मेदारी युग-युगांतर से यहां के कोतवाल "काल भैरव" पर है। जी हां, समूचे जगत को धर्म-अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाली सबसे न्यारी हमारी प्यारी काशी नगरी की आन-बान-शान हैं काल भैरव। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम 'दंडपाणी' पड़ा था।
Related
Discussion about this post