बीएनपी न्यूज डेस्क। Judge of Supreme Court Justice DY Chandrachud उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आज प्रत्येक न्यायालय में वादों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में विधि और विधिवेत्ताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। पिछले 10 से 20 वर्षों में केवल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 4,65, 496 आपराधिक वाद लंबित हैं। जिला न्यायालयों में 82 लाख 41 हजार 560 मुकदमे लंबित हैं। इनमें से 30 फीसद तो केवल पिछले वर्ष दायर हुए हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय के महामना सभागार में आयोजित शताब्दी समारोह को दूसरे दिन शनिवार को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विधि में सामाजिक परिवर्तन की शक्ति होती है। इतिहास में विधि का प्रयोग लोगों को दबाने के लिए किया जाता था, लेकिन आज के युग में विधि सामाजिक परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभा रही है। अधिवक्ता का कार्य निर्धारित सीमाओं से परे जाकर कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाना है। अधिवक्ता को निडर एवं स्वतंत्र होकर विधि व्यवसाय करना चाहिए। किसी के प्रति पक्षपाती नहीं होना चाहिए। बीएचयू के इतिहास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यहां के विधि संकाय ने निश्शुल्क विधिक सहायता के विकास में 70 के दशक से ही अग्रणी भूमिका निभाई है।
विधि छात्रों को दिया जाए 40 घंटे का मध्यस्थता प्रशिक्षण
विशिष्ट अतिथि उच्च न्यायालय इलाहाबाद के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने कहा कि अधिवक्ताओं के सफलता की कुंजी कठिन परिश्रम है। उन्होंने युवा अधिवक्ताओं और विधि के छात्रों का आह्वान किया कि वे एक गांव गोद लें और वहां विधिक जागरूकता का प्रसार करें ताकि उसे वाद मुक्त किया जा सके। लोग छोटे-छोटे मामलों को अदालतों तक ले जाने से बचें। उन्होंने कहा कि विधि के छात्रों को कम से कम 40 घंटे की मध्यस्थता का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने आसपास और गांव के छोटे-मोटे मामलों को दोनों पक्षों की सहमति से मिल-बैठ कर न्याय पूर्वक सुलझा सकें। बीएचयू के पुरातन छात्रों का आह्वान कि वे यहां के ब्रांड अंबेसडर के रूप में यहां की अच्छाइयों और नीतियों को बाहर तक ले जाएं और उनका प्रसार करें।
बीएचयू ने ही शुरू कराया तीन वर्षीय पाठ्यक्रम : प्रो. मिश्र
बीएचयू के पूर्व छात्र, संकाय के पूर्व डीन व दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आरके मिश्र ने बीएचयू विधि संकाय के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला। बताया कि 1970 में तत्कालीन डीन प्रो. आनंद के महती प्रयासों से बार काउंसिल आफ इंडिया ने विधि स्नातक के तीन वर्षीय पाठ्यक्रम को पूरे देश में लागू किया। पहले यहां केवल अधिवक्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता था लेकिन प्रो. आनंद ने विधि शिक्षकों की शिक्षा के लिए भी व्यवस्था उपलब्ध कराई।
अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के रेक्टर प्रो. वीके शुक्ला ने महामना के आदर्शों और विधिक जीवन पर प्रकाश डाला। प्रो. अली मेहंदी ने अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम समन्वयक प्रो. अखिलेंद्र कुमार पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन सहायक प्रोफेसर डाली सिंह ने किया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनोज कुमार गुप्ता, प्रदेश विधि आयोग के अध्यक्ष, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं बीएचयू के पुरातन छात्र प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, उच्चतम न्यायालय के प्रतिष्ठित अधिवक्ता कर्नल बालासुब्रमण्यम व कर्नल इंद्रसेन, पूर्व संकाय प्रमुख प्रो. बीएन पांडेय, पूर्व प्राध्यापक प्रो. आशा त्रिवेदी आदि थे।
दो जर्नलों का हुआ प्रकाशन
शताब्दी समारोह में विधि संकाय से प्रकाशित बनारस ला जर्नल -2021 एवं महामना छात्र ला जर्नल-2021 का विमोचन किया गया।
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