बीएनपी न्यूज डेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए मंगलवार को उसे आपातकाल, सिख विरोधी दंगों और कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा परिवारवादी पार्टियों से है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक तरह से शहरी (अर्बन) नक्सलियों के कब्जे में है और वे उसके विचारों एवं विचारधारा को नियंत्रित कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने विपक्षी पार्टी को सुझाव दिया कि वह अपना नाम ‘‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’’ से बदलकर ‘‘फेडरेशन ऑफ कांग्रेस’’ कर ले।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह बात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिये बिना उनकी इस बात पर प्रहार करते हुए कही कि ‘‘भारत राष्ट्र नहीं है और यह राज्यों का संघ है’’। राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए मोदी ने अपनी सरकार की विभिन्न उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख किया और कांग्रेस पर देश के विकास में रोड़े अटकाने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बावजूद भारत एकमात्र अर्थव्यवस्था है, जहां विकास की दर ऊंची और महंगाई की दर मध्यम है। कोरोना काल में 80 करोड़ से भी अधिक देशवासियों को मुफ्त राशन दिए जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने भरोसा दिलाया कि जब तक महमारी का दौर रहेगा, सरकार गरीबों की रक्षा करती रहेगी।
प्रधानमंत्री ने कहा ‘‘कांग्रेस एक तरह से शहरी नक्सलियों के कब्जे में है। इसलिए इसके विचार नकारात्मक होते जा रहे हैं।’’ प्रधानमंत्री के भाषण के बाद राज्यसभा ने धन्यवाद प्रस्ताव पर विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज करते हुए इसे ध्वनि मत से पारित किया। इससे पूर्व प्रधानमंत्री की बातों का कांग्रेस ने कड़ा प्रतिकार किया और सदन से वाक आउट कर गए। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए मोदी ने कहा कि देश में आपातकाल थोपने वालों को और लोकतंत्र का गला घोटने वालों को लोकतंत्र पर उपदेश देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत लोकतंत्र की जननी है और दुनिया में इसकी चर्चा होती है लेकिन कांग्रेस की कठिनाई है कि परिवारवाद के आगे उन्होंने कुछ सोचा ही नहीं…भारत के लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा परिवारवादी पार्टियों से है, यह मानना पड़ेगा।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब किसी पार्टी में कोई एक परिवार सर्वोपरि हो जाता है तो इसका सबसे पहला नुकसान प्रतिभा को होती है। प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों से अपने-अपने राजनीतिक संगठनों में लोकतांत्रिक आदर्शों व मूल्यों को विकसित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की सबसे पुरानी पार्टी के रूप में कांग्रेस को तो इसकी जिम्मेवारी जरूर उठानी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस को विलुप्त करने की बात कही थी और ऐसा हो गया होता तो दशकों तक देश को विभिन्न समस्याओं से दो-चार ना होना पड़ता। उन्होंने कहा कि अगर महात्मा गांधी की इच्छा के अनुसार कांग्रेस ना होती तो लोकतंत्र परिवारवाद से मुक्त होता और भारत विदेशी के बजाए स्वदेशी संकल्पों के रास्ते पर चलता।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर कांग्रेस ना होती तो आपातकाल का कलंक ना होता…अगर कांग्रेस ना होती तो दशकों तक भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाकर नहीं रखा जाता… अगर कांग्रेस ना होती तो जातिवाद और क्षेत्रवाद की खाई इतनी गहरी ना होती… अगर कांग्रेस ना होती तो सिखों का नरसंहार ना होता… सालों साल पंजाब आतंकवाद की आग में ना जलता…कश्मीर के पंडितों को कश्मीर छोड़ने की नौबत ना आती है… अगर कांग्रेस ना होती तो बेटियों को तंदूर में जलाने की घटनाएं ना होती… अगर कांग्रेस ना होती देश के सामान्य जन को सड़क, बिजली, पानी और शौचालय की मूलभूत सुविधाओं के लिए इतने सालों तक इंतजार ना करना पड़ता।’’
प्रधानमंत्री ने दावा किया कि कांग्रेस जब तक सत्ता में रही तो उसने देश का विकास नहीं होने दिया और आज जब विपक्ष में है तो वह देश के विकास में बाधा डाल रही है। राहुल गांधी के ‘‘भारत राष्ट्र नहीं है और यह राज्यों का संघ है’’ संबंधी बयान की ओर इंगित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अब तो कांग्रेस को भारत के लिए ‘‘राष्ट्र’’ शब्द कहे जाने पर भी आपत्ति है। उन्होंने कहा कि यह कल्पना ‘‘गैर संवैधानिक’’ है।
उन्होंने सवालिया अंदाज में कहा कि कांग्रेस को राष्ट्र शब्द से इतनी ही आपत्ति है तो उसने अपने दल के नाम में राष्ट्रीय क्यों रखा है।
उन्होंने कहा, ‘‘तो आपकी पार्टी का नाम इंडियन नेशनल कांग्रेस क्यों रखा गया है। आपको नई सोच आई है तो इंडियन नेशनल कांग्रेस नाम बदल दीजिए और फेडरेशन ऑफ कांग्रेस कर लीजिए। अपने पूर्वजों की गलती को सुधार दीजिए।’’ प्रधानमंत्री की इन बातों का कांग्रेस के सदस्यों ने विरोध किया और कुछ देर हंगामा करने के बाद पार्टी के सभी सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गए।
उनके सदन से बाहर जाने के बाद भी प्रधानमंत्री का कांग्रेस पर हमला जारी रहा। उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में सिर्फ सुनाना ही नहीं होता है, सुनना भी लोकतंत्र का हिस्सा होता है। लेकिन सालों तक उपदेश देने की आदत रही है उनकी। इसलिए बातें सुनने में मुश्किल हो रही है उन्हें।’’
अभिव्यक्ति की आजादी पर कांग्रेस के हमलों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर का एक उदाहरण दिया और बताया कि किसी प्रकार वीर सावरकर पर एक कविता पाठ करने के लिए उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया था और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी को जवाहरलाल नेहरू की आलोचना के लिए जेल भेज दिया गया था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को लगता है कि देश का जन्म 1947 में हुआ। उन्होंने कहा कि यह मानसिकता देश के लिए नुकसानदेह है। प्रधानमंत्री ने 50 से अधिक विभिन्न दलों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कांग्रेस को आज इसी की भुगतनी पड़ रही है।
उन्होंने कहा कि महंगाई नियंत्रण के ईमानदार प्रयासों के कारण भारत आज दुनिया की एकमात्र अर्थव्यवस्था है, जहां विकास की दर उच्च और महंगाई की दर मध्यम है जबकि विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के विकास की दर धीमी है और महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर है। उन्होंने कहा, ‘‘महंगाई की बात करें तो अमेरिका में 40 साल में सबसे अधिक महंगाई का यह दौर चल रहा है। ब्रिटेन 30 साल में सबसे अधिक महंगाई की मार से आज परेशान है। दुनिया के 19 देशों में जहां यूरो मुद्रा है, वहां महंगाई की दर ऐतिहासिक उच्चतम स्तर पर है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे माहौल में और महामारी के दबाव के बावजूद, भारत में महंगाई को एक स्तर पर रोकने का बहुत प्रयास किया गया है और ईमानदारी से कोशिश की गई है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से लेकर 2020 तक देश में महंगाई की दर 4 से 5 प्रतिशत के आसपास थी और जब इसकी तुलना संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के दौर से की जाएगी तो पता चलेगा महंगाई होती क्या है? उन्होंने कहा, ‘‘उस समय (संप्रग शासनकाल के दौरान) महंगाई दो अंको को छू रही थी। आज हम एकमात्र बड़ी अर्थव्यवस्था है जो उच्च विकास और मध्यम महंगाई अनुभव कर रहे हैं। बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था को देखें तो वहां की अर्थव्यवस्था में या तो विकास की दर धीमी हुई है या तो महंगाई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ रही है।’’प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में आशा भी है, विश्वास भी है, संकल्प भी है और समर्पण भी है।
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